शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

आदत

 कोई भी आदत अच्छी है अथवा बुरी यह समझ, या कह लें कि वह ध्यान आकर्षित भी तभी कर पाती है, जब उस के परिणाम हमारे अथवा परिवार के जीवन पर पड़ने लगते हैं, परन्तु तब तक वह जीवन शैली बन जाती है, जिसको हम अनेकानेक प्रयासों के बाद भी बदल नहीं पाते हैं तब भी उसके दुष्परिणामों को समझते हुए , उसके चंगुल से छूटने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहते हैं। इस तरह की आदतों में सामान्यतः नशा अथवा दूसरों को पीड़ा पहुँचा कर मिलने वाले आनन्द की आदत है। वहीं कुछ ऐसी आदतें भी होती हैं जो स्वयं को ज्यादा परेशान करती हैं। परन्तु यह भी एक बहुत बड़ा सच है कि नशा जैसी घातक आदतें जल्दी नहीं जाती हैं परन्तु चली जाती हैं, जबकि स्वयं को नुकसान पहुँचाती आदतें बहुत मुश्किल से जाती हैं और अक्सर नहीं भी जाती हैं।


स्वयं को नुकसान पहुँचानेवाली आदतों की बात करें तब सबसे पहले जिस आदत की बात करूँगी, वह है दूसरे सभी को स्वयं से आगे रखने की आदत और इस आदत से स्त्री हो अथवा पुरूष, दोनों ही ग्रसित रहते हैं। अधिकतर स्त्रियाँ अपने दायरे में अपने स्वास्थ्य एवं आराम के प्रति लापरवाह रहती हैं। कोई भी वस्तु पहले सब के लिए परोस देती हैं, उसके बाद बच गया तब स्वयं लेती हैं, परन्तु यदि उसी समय दो अतिथि भी आ जाएं तब उनके लिए भी वह सामग्री सुलभ होती है अथवा बन जाती है, जबकि स्वयं के लिए कोई सब्स्टीच्यूट तलाश लेती हैं।स्वयं के लिए कुछ खरीदने में भी सबसे पीछे रहती हैं। ऐसा ही पुरूष भी करते हैं। ज़िन्दगी की तमाम तीखी धूप का ताप वो स्वयं पर ले लेते हैं और अपने परिजनों के हिस्से में शीतल एवं सुगंधित बयार जुटा लाते हैं। यह आदत दोनों को ही बदलनी चाहिए परन्तु जिम्मेदारी की आदत के तहत, इस को निभाये जाते हैं।


यदि मैं अपनी आदत की बात करूँ जिससे मैं परेशान भी बहुत हुई हूँ परन्तु बदल नहीं पाई हूँ, वह है इस कई मुखौटों वाली दुनिया में इकलौता चेहरा रखने की और स्वयं को मिलने वाले अवसरों पर दूसरों को भेजने की आदत। किसी भी विषय अथवा सम्बन्ध में, जो भी मेरा विचार रहता है, वह पूरी ईमानदारी और बेबाकी से रख देती हूँ। इसका दुष्परिणाम भी मैंने झेला है। मेरा सच जानकर दूसरे उसमें अपना गणितीय फॉर्मूला लगा कर बड़े ही आराम से दोषी साबित कर जाते रहे हैं। मेरे सच को झूठ मान कर यह भी कहा गया कि कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है जो सिर्फ़ सब का हित सोचे एवं करे ... कोई इतना मीठा तभी बोल सकता है जब वह सप्रयास अपने अन्दर अथाह कड़वाहट छुपाये हो। मैं भी थोड़ी क्या बहुत ही उल्टी सोच रखती हूँ ... इस तरह की प्रतिक्रियाओं को भी सकारात्मकता से लिया कि कोई हो अथवा न हो परन्तु मैं तो ऐसी ही हूँ। 


मेरे बच्चे भी कहते हैं,"किसी को गलत्त समझना आपके लिए असम्भव काम है ... आप उसमें भी उसकी कोई मजबूरी खोज लायेंगी।" कभी-कभी मैं भी सोचती हूँ और प्रयास भी किया कि एकाध चेहरा मैं भी लगा लूँ या थोड़ा सा कम सच बोलूँ, परन्तु बहुत बुरी तरह से असफ़ल हुई हूँ और अपनी सरलता नहीं छोड़ पाई हूँ। 


वैसे भी यदि मुझमें रत्ती भर भी परिवर्तन हो गया तब वह मैं नहीं रहूँगी कोई और ही शख्सियत बन जाऊँगी। शेष मेरे बारे में कोई क्या सोचता अथवा करता है, यह जानना और देखना भोलेनाथ एवं माँ शारदे का काम है।

निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

लखनऊ

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

समस्या और समाधान

 समस्या और समाधान


समस्या और उनका समाधान,अक्सर ही एक-दूसरे के साथ गलबहियाँ डाले हुए ही चलते हैं, परन्तु जब अचानक से ही कोई समस्या सामने आ जाती है, तब मस्तिष्क एक पल को शिथिल पड़ जाता है और उसी शिथिल हुए पल की कमजोरी का लाभ उठा कर समस्या अपना विकराल रूप दिखा कर,अपनी समस्त नकारात्मकता के साथ मन मस्तिष्क पर प्रभावी हो जाती है। इस बात की रोचकता यही है कि वह समस्या जीवन-मरण के प्रश्न जैसी नहीं होती अपितु बहुत छोटी सी भी हो सकती है,यथा हमको कहीं जाना हो और कैब या ऑटो न मिलने पर एक बदहवासी सी तारी हो जाती जबकि थोड़ा आगे चलने पर ही हमको कोई साधन मिल सकता है या उतनी दूरी तक पैदल ही चलने से हम गंतव्य के कुछ पास आ जाते हैं।

यह पूर्णतया सत्य है कि जीवन है तो समस्याएँ तो आगे-पीछे से उपस्थित हो कर साँसों का संतुलन बिगाड़ने के लिए सतत प्रयत्नशील रहती हैं क्योंकि यही उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। पानी के प्रवाह की प्रवृत्ति ढ़लान की तरफ़ ही गतिमान होना ही है, तब भी उस की प्रवृत्ति की विकरालता पर अंकुश लगा कर हम बाँध बना कर विभिन्न सकारात्मक कार्यों में उसकी ऊर्जा को समाहित कर देते हैं।

समस्याओं का समाधान तुरन्त करना है अथवा बाद में, यह तो उसकी प्रकृति एवं हमारी प्राथमिकता पर निर्भर करता है। बस याद रखने योग्य सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि कभी भी समस्या को अनदेखा नहीं छोड़ना चाहिए, उनका समाधान / निराकरण अवश्य करना चाहिए।

मैं भी एक सामान्य व्यक्ति ही हूँ और जीवन में नित नई समस्याओं का सामना करती हूँ। समस्याओं के समाधान का मेरा तरीका बस इतना सा रहता है कि मैं पहले उस समस्या का सामना करती हूँ और उसके थोड़ा सम्हलने पर उसके कारण को समझ कर, उस समस्या की विकरालता की गति को अवरुद्ध करने का प्रयास करती हूँ। शेष चुनौतियों को छोड़ कर सिर्फ़ एक ही चुनौती / समस्या का ज़िक्र करना चाहूँगी जो रूप बदल-बदल कर सदैव साथ रही है। अपने काम के शुरू से ही अमित जी डिस्ट्रीब्यूशन में रहे हैं जो सीधे आम जन से जुड़ कर उनके सामने ही रखता है। आमजन को समस्या के कारण से मतलब नहीं रहता कि ट्रांसफॉर्मर खराब हो गया है कि तार टूट गया है, उनको तो निर्बाध रूप से विद्युत आपूर्ति चाहिए। ऑफिस में अधिकारियों के घेराव एवं नारेबाज़ी से मन नहीं भरता था तो परिवार को धमकाने जुलूस की शक्ल में आ जाते थे या फ़ोन करते रहते। शेष घटनाओं को एक बार भूलने का प्रयास भी करती हूँ, तब भी एक घटना नहीं भूलती ... एक पोस्टिंग पर वहाँ के नेतागिरी चमकाने के लिए किसी भी हद तक निरंकुश होने वाले सज्जन (?) के कई बार फ़ोन आ जाते थे या फिर जुलूस जैसी भीड़ के साथ स्वयं। उस समय  मेरा जवाब रहता कि सर से बात कीजिये। एक बार बच्चों की तबियत गड़बड़ थी और फिर फ़ोन आया, अपना रौब बनाये रखने के लिए यह सारी फ़ोन कॉल्स वो अपने समर्थकों के सामने स्पीकर पर करते थे। इस बार मेरा धैर्य भी जवाब दे गया और मैंने कहा,"प्रशासन में काम और आपके प्रश्नों प्रति उत्तरदायी सर हैं मैं नहीं। अब यदि आपको मुझसे ही जवाब चाहिए तो मेरी भी नौकरी सर की सेक्रेटरी के रूप में लगवा दीजिये ... और जहाँ तक बात है आपकी धमकियों की तो महोदय अमर हो कर कोई भी नहीं आया है। जब जिस पल भोलेनाथ चाहेंगे साँसे बन्द हो जाएंगी और जब तक वो नहीं चाहेंगे कोई किसी का बाल भी बाँका नहीं कर सकता है। स्पीकर पर ही आप बात करते हैं न तो सब ने मेरा भी जवाब सुन लिया होगा और अब आप यह ध्यान रखियेगा कि यदि मेरे परिवार को खरोंच भी आई तो सबसे पहले शक़ की सुई आपकी तरफ़ ही जाएगी। अपनी सुरक्षा के लिए हम सब की सुरक्षा की भी दुआ मांगियेगा।" मेरे इस जवाब के बाद वो एकदम शान्त हो गया और हमारे बाद जानेवाले अधिकारियों के भी घर कभी फ़ोन कर के अथवा जुलूस ले कर धमकाने नहीं पहुँचा।

किसी भी प्रकार की समस्या आने पर यदि पहले ही हम पैनिक हो जाएं और यही सोचते रहें कि वह समस्या आयी क्यों या कैसे आयी या फिर मेरे ही साथ ऐसा क्यों होता है ,तब तो उसको अपने दावानल में सम्पूर्ण स्वाहा करने का और भी अधिक अवसर मिल जाएगा।

समस्या बड़ी हो या छोटी,उसके अंकुरण के साथ ही उसका समाधान भी साँस लेने लगता है, आवश्यकता मात्र इतनी ही होती है कि उसको सकारात्मकता की धूप-पानी रूपी ऊर्जा पहुँचा कर समस्या रूपी आवरण को हटा कर समाधान को पल्लवित होने का अवसर दें।
#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी
#लखनऊ

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

घेरे प्रश्नों के : कैकेयी

 


सुन जरा ओ राजमहिषी
ऐसा जीवन कैसे जिया होगा!
सच बता ओ कैकेयी
पल-पल गरल पान किया होगा!

यहाँ-वहाँ की बातों में
तपती जलती रातों में
शर सन्धान किये होंगे
उर भिगोती बरसातों में
सच बता ओ कैकेयी
उधड़ी सीवन कैसे सिया होगा!

दशरथ ने ली अन्तिम शय्या
काल बन कर आया छलिया
पुत्र शोक में देख विह्वल
क्यों न भीगी तेरी अँखियाँ
सच बता ओ कैकेयी
वनवास कैसे दिया होगा!

राम सबल पुत्र थे मेरे
बहुत बड़ी आस हमारे
रामराज्य की आस लिए
वचन याद दिलाते तेरे
सच बताऊँ ऐ युग पुरूष
आगे-पीछे क्या-क्या न सोचा होगा!
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ

मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

लघुकथा : बिन्दी


नन्हा सा अवि खेलते_खेलते ड्रेसिंग टेबल की तरफ़ बढ़ गया और शीशे के किनारे लगी हुई बिन्दियों से खेलने ही लगा था कि उसके पापा ने टोका,"बेटा! बिन्दियों से नहीं खेलते, गन्दी हो गयीं हैं। दिवी! हटाओ इनको।"

बेटे ने पलट कर देखा ," पापा ऐसा मत कहिये ,ये तो आप हैं, हटा दिया तो आप दादा जी हो जायेंगे और चले जायेंगे ..."

"अरे! ये सब किसने कहा ... जाओ खेलो",स्तब्ध होते हुए पापा ने कहा।

अवि सहम गया,"पापा! दादी माँ को बिन्दी लगाने के लिए जब कहा तो उन्होंने कहा कि उनकी बिन्दी दादा जी के साथ गयी।"

निवेदिता श्रीवास्तव निवी

लखनऊ

शनिवार, 3 दिसंबर 2022

महाभारत के चरित्र : विकर्ण



विभिन्न पौराणिक ग्रन्थों के कई चरित्र अपनी चरित्रगत विशिष्टता (अच्छी अथवा बुरी, दोनों ही) के लिए मानस में स्थान बना ही लेते हैं और वो जाने-अनजाने ही जीवन क्षेत्र में हमको प्रभावित भी करते हैं। यदि हम महाभारत को केन्द्र में रख कर मनन करें तो भीष्म सामर्थ्यवान होते हुए भी अपनी प्रतिज्ञा के चक्रव्यूह में उलझ कर अपने कुल के विनाश के सहभागी एवं विवश दृष्टा बने रह गए, तो धृतराष्ट्र अपने पुत्रमोह एवं राजसत्ता के दावानल में झुलसते रहे। जहाँ युधिष्ठिर तथाकथित धर्म का आवरण ओढ़े द्यूत में परिजनों को होम कर बैठे, वहीं दुर्योधन स्वयं को ठगा अनुभव कर के उद्दण्ड होता गया और सबको नकारता चला गया। विदुर और कृष्ण ने भी युद्ध रोकने का प्रयास किया, परन्तु असफ़ल ही रहे। 


उपरोक्त सभी चरित्र अपनेआप में अनेकानेक विशिष्टताओं का समावेश किये बैठे हैं, परन्तु महाभारत के जिस चरित्र ने मुझको सर्वाधिक प्रभावित किया वह विकर्ण है। धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से, उनका सबसे छोटा पुत्र था #विकर्ण । 


एक तरह से देखा जाए तो राज्य लालसा से छटपटाते धृतराष्ट्र, अहंकार से चूर दुर्योधन, विवश एवं गुप्त बदले की लालसा से ग्रसित शकुनि के साथ एवं सरंक्षण में होते हुए भी, विकर्ण ने सच का साथ नहीं छोड़ा था। महाभारत के युद्ध की जब पृष्ठभूमि रची जा रही थी, तब प्रत्येक घटना पर विकर्ण ने प्रतिरोध किया था। जब कृष्ण पाँच गाँव के सन्धि वार्ता के प्रस्ताव के साथ आये थे और कौरव इसके लिए तैयार नहीं हुए थे, तब भी विकर्ण ने कौरवों का विरोध किया था। द्यूत सभा के पीछे छुपी हुई, शकुनि की मंशा को समझ कर, उसका भी विरोध किया था। उस द्युत की चरम परिणति, समस्त राजकीय गौरव एवं पाण्डवों को भी हारने के बाद, जब द्रौपदी को दाँव पर लगाया जा रहा था, तब भी विकर्ण ने सबको रोकने का प्रयास किया। इन सब में विफल होने के बाद भी उसने न्याय एवं सच का साथ नहीं छोड़ा और द्रौपदी के वस्त्रहरण के समय भी, जब भीष्म इत्यादि तथाकथित महारथी भी मुँह फेर के विवशता प्रदर्शित कर रहे थे, तब भी विकर्ण ने प्रबल विरोध किया और दुर्योधन के द्वारा प्रताड़ित हो कर सभा से चला गया था। 


विरोध विदुर ने भी किया था, परन्तु उनके लिये कौरव एवं पाण्डव एक से थे, जिसमें से उन्होंने सच एवं धर्म के संगी पाण्डवों का साथ देना चुना, परन्तु विकर्ण ने न्याय के लिए अपने ही परिवार का विरोध किया। ऐसा विशिष्ट व्यक्तित्व, विकर्ण महाभारत का एक बहुत कम चर्चित, परन्तु मेरा प्रिय चरित्र है। 

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 

#लखनऊ

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

शिवोहम शिवोहम !!!

लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन

कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!

सुमिरूँ तुझको ओ अविनासी
दरस को तेरे अँखियाँ पियासी
पिनाकपाणी जपूँ मैं स्त्रोतम
आओ उमापति मिटाओ उदासी
झुकाए मस्तक करूँ मैं अर्चन!
लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन
कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!

कामनाओं के बादल घनेरे
मुझको माया हर पल घेरे
वासना के जाल हटाओ
याचना करूँ लगा के फ़ेरे
लगाई आस बनूँ मैं कुन्दन!
लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन
कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!

नन्दि सवारी सर्प हैं गहने
तेरी महिमा के क्या कहने
छवि अलौकिक नेह बरसे
त्रुटि बिसारो जो हुई अनजाने
कृपा करो हे सिंधुनन्दन!
लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन
कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ

शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

पारलौकिक अनुभव

पारलौकिक अनुभव


लोक-परलोक का विचार मात्र ही, मुझको बहुत रोमांचित कर जाता है। घर में सब बताते थे कि बचपन में भी, जब बच्चे गुड्डे गुड़िया खेलते हैं, तब भी मैं कभी पापा मम्मी के, तो कभी घर में सहायक काका को अपने सवालों से परेशान करती थी कि भगवान कहाँ हैं, दिखते क्यों नहीं, पड़ोसी के शरीर के शान्त होने पर के सवाल ... वगैरह! उस समय काका ने समझाया था कि भोलेनाथ से पूछो,उनके पास प्रत्येक प्रश्न का उत्तर रहता है। बस तभी से भोलेनाथ जपने लगी। मेरे प्रत्येक कठिन समय में भी उन्होंने मेरी उँगली थामे रखी और न जाने कितने अनुभव कराये, कभी शिशु भाव से तो कभी मित्र भाव से ... कभी-कभी तो मातृ भाव भी। मुझे लगता कि मुझको तो देवा प्रत्येक कठिनाई से निकाल लायेंगे और सारी तीक्ष्णता स्वयं पर ले लेंगे, परन्तु मैं पीड़ित होती थी कि यदि मैं इतनी परेशान हो जाती हूँ तो उनको कितना कष्ट पहुँचता होगा। 


बहरहाल भोलेनाथ की स्नेहिल छाया तले जीवन ऐसे ही अनुभवों से बीत रहा है। बहुत सारी घटनाओं में से एक घटना साझा कर रही हूँ।


कुछ वर्षों पूर्व, २६ जनवरी को पापा को दिल का दौरा पड़ा था, उस समय वो दिल्ली में ही रहते थे, मेरे छोटे भाई के साथ। मेरे सारे भाई भी वहीं थे। उस दिन ट्रैफिक डायवर्जन इतना ज्यादा रहता कि कहीं भी पहुँचना बहुत मुश्किल होता था। दूसरे भाई, जो डॉक्टर हैं, ने बहुत प्रयास किया कनॉट प्लेस रेलवे हॉस्पिटल, जहाँ के वो इंचार्ज थे, ले जाने का परन्तु एम्बुलेंस को भी बार-बार रोक दिया जा रहा था। बहरहाल पास के नर्सिंग होम में पापा को एडमिट किया गया। अमित जी बाहर पोस्टेड थे और मैं बच्चों के साथ लखनऊ में, इसलिये मुझको बहुत बाद में बताया। दो फरवरी की सुबह अमित जी अपने सहायक के साथ आये तो पहली बार बच्चों को घर पर अकेले छोड़ पापा से मिलने भागी थी। दो दिन पहले पापा घर आ गए थे। जब पापा को देखा तो लगा अब देखभाल से ठीक हो जाएंगे और भाभियों के साथ उनकी डाइट चार्ट बनाया। 


दो फरवरी की रात को वापसी थी हमारी ... पापा को प्रणाम करने के बाद मम्मी की तस्वीर को भी प्रणाम किया और पापा से कहा,"अगली बार मम्मी की यह तस्वीर बदल देंगे,इसमें वो बहुत उदास और रुआँसी सी लगती हैं।" यह कहती हुई तसवीर की तरफ पलटी तो मैं एकदम चौंक गयी उस पल मम्मी की वही तसवीर बहुत खुश, खूब खिलखिलाती हुई लग रही थी। भाइयों से ज़िक्र किया तो उन्होंने कहा कि उनको ऐसा नहीं लगा। 


हम स्टेशन चले गये और जैसे ही ट्रेन ने अपनी गति तीव्र करते हुए स्टेशन छोड़ा ही था कि भाई का फ़ोन आ गया कि पापा नहीं रहे ... तीव्र गति से दौड़ती ट्रेन में, हम हतप्रभ से बैठे रह गए। सहयात्रियों ने सलाह दी और हम गाजियाबाद उतर कर टैक्सी से वापस भाई के घर पहुँचे तब घर में एक अलग सी खुशबू भरी थी और मम्मी की तस्वीर चमक रही थी। अब मुझे उनकी उस उदास सी तस्वीर पर छाई खुशी का रहस्य समझ आ रहा था🙏

निवेदिता श्रीवास्तव निवी

लखनऊ

सोमवार, 21 नवंबर 2022

पिंजरा


पिंजरा ... सोचिए तो कितना बहुआयामी शब्द अथवा वस्तु है। दुनियावी दृष्टि से देखें तो सबसे पहले पक्षियों का पिंजरा ही याद आता है, उसमें भी मिट्ठू (तोते) का, जो बहुत ही शीघ्रता से अपनी टाँय-टाँय छोड़ कर जिस परिवेश में रहता है, उसी में ढ़ल कर वहीं की भाषा बोलने लगता है। 

दूसरा पिंजरा याद आता है सबसे बलशाली पशु शेर का। जरा सोच कर देखिये कि जंगल का राजा शेर, जो तामसी और आक्रामक प्रवृत्ति का होता है पिंजरे में बन्द होते ही, अपनी सहज स्वाभाविक गर्जना भूल कर रिंगमास्टर के चाबुक के इशारों पर नतशीश हो दहाड़ने की इच्छा को उबासी में बदल देता है।

बहुत छोटे एवं निरीह तोते से ले कर सर्वाधिक शक्तिशाली शेर, पिंजरे में अर्थात बंधन में पड़ते ही अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति भूल जाते हैं। एक निश्चित परिधि में ही वो घूमते हैं, निश्चित आहार लेते हैं और सबसे बड़ी बात कि पिंजरे के मालिक के प्रति समर्पित हो जाते हैं। यही समर्पण भाव उनको सुनिश्चित जीवनचर्या दिलाते हुए भी स्वाभाविकता से बहुत दूर ले जाता है। परन्तु जिस भी पल उनको अपनी वास्तविक स्थिति का आभास होता है, उसी पल से वो मुक्त होने का प्रयास करने लगते हैं।

पशु पक्षियों से इतर, हम सभी मनुष्य विभिन्न स्तर एवं प्रकार के विवेक से सम्पन्न हैं। दूसरों के जीवन, उनकी जीवन शैली, गुण-दुर्गुण सभी की विवेचना, या कह लूँ आलोचना करते हैं परन्तु अपने तन एवं मन के पिंजरे के विषय मे सोचने के बारे में भी, नही सोचते हैं।

ईश्वर हमारे तन के पिंजरे में एकदम मासूम फ़ाख्ता सा निष्कलुष मन दे कर भेजता है। अन्य पशु-पक्षियों की भाँति ही जिस परिवेश में तन रहता है, मन भी उसी के अनुसार ढ़लता जाता है। वातावरण को आत्मसात करने की इस पूरी प्रक्रिया में अपनी शुभ्रता को मलिन करता हुआ,प्रतीक्षा करता है कि कोई अन्य आ कर पिंजरे की तीली तोड़ कर, उसको स्वतंत्र कर देगा ... परन्तु व्यवहारिकता के धरातल पर यदि देखा जाए तो पहला प्रयास तो हमको स्वयं ही करना होगा। माया-मोह की दलदल में फँसे होने और छूटने के लिए स्वयं को आत्मशक्ति में स्थिर करना ही पड़ेगा,अन्यथा प्रत्येक आने-जाने वाले की तरफ हाथ फेंकते-फेंकते उसी दलदल की असीम गहराइयों में समा कर दम तोड़ देंगे।

उत्तरदायित्वों से भागना नहीं है और न ही उनमें सदैव लिप्त रहना है, अपितु निस्पृह भाव से उनको पूरा करना है। साथ ही साथ आत्मचेतना को जागृत करने के लिए अतमन्थन करना होगा। तभी तन के पिंजरे के जीर्ण होने पर, मन का पक्षी शुभ्रता के साथ परम सत्ता के अपने स्वाभाविक परिवेश में मन मस्त मगन सा जाएगा।

निवेदिता श्रीवास्तव निवी

#लखनऊ

बुधवार, 16 नवंबर 2022

वृंदावन बनता मन !


मन बहुत अशांत सा, न जाने कितनी चाहतों से छलकता  और भटकता, प्रत्येक प्राप्य-अप्राप्य की तरफ़ लपकता ही जा रहा है। कभी अतल गहराइयाँ दिखती हैं तो कभी सन्नाटा भरता दम तोड़ता सुकून। एक अलग ही गुंजल में, भँवर में डूबता जा रहा था कि विह्वल से मन में वंशी की धुन तैर गयी ...

अहा कान्हा! तुम आये हो हाथ थामने !
अब जब तुमने सहारा दिया ही है तो ऐसे ही थामे रखना, कहीं ऐसा न हो कि हवा चलने पर मोर पंख सी उड़ जाऊँ या सूख जाने पर चढ़े हुए पुष्पों सी हटा दी जाऊँ। बस अब तो अपनी मुरली जैसे स्नेह से ही सदा साथ रखना, कभी आशीष देती उँगलियों की थपकन में तो कभी कटि में सज्ज कर आसरा देते स्पर्श में। किसी मायाजाल में उलझ, भटक कर कहीं चले जाने पर वापस लाने के लिए भी उतने ही विकल हो स्वयं में समाहित कर लेना।
जानती हूँ कान्हा बहुत मुश्किल होता है बांसुरी बनना क्योंकि बांसुरी बनने के पहले वो महज एक बांस का टुकडा ही रहती है। उसमें बहुत से विकार रहते हैं। जब उस टुकडे को साफ़ कर अदंर से सब कलुषता हटा कर संतुलित स्थान पर छिद्र करते हैं, जिससे अंदर कहीं भी कलुष न रह जाये, तब उसको बांसुरी का सुरीला रूप मिलता है। तब भी उसमें से मधुर स्वर तभी निकलते हैं , जब कोई योग्य व्यक्ति उसको  स्पर्श करता है। अगर अयोग्य के हाथ पड़ी तो तीखे स्वर ही निकलेगें।

ऎसे ही मन से आत्मा से समस्त कलुष-विकार हटा दें, तब वह निर्मल भाव बांस का एक पोला टुकडा  बनता है । इस टुकडे में मन की, कर्म की, नीयत की सरलता , सहजता एवं सद्प्रवॄत्तियों को आत्मस्थ करने पर मन रूपी बांस के टुकडे पर संतुलित द्वार बनते हैं। इन्ही द्वारों से आने वाले सद्विचार एवं सत्कर्म हमें परमेश्वर रूप निपुण वंशीवादक से मिलाते हैं , जो हमारी मन वीणा को झंकॄत कर मीठी स्वरलहरी से भावाभिभूत करते हैं और मन बांसुरी सा वॄंदावन बन जाता है। मन को बांसुरी बनाने पर ही वॄंदावन दिखता है ।
चल रे मनवा वृंदावन बन जा ❤️

निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

लखनऊ

शनिवार, 12 नवंबर 2022

धर्म निरपेक्षता


धर्म हमारे जीवन में इस हद तक रच बस गया है कि उसके विषय में कुछ भी सोचे या विवेचना किये बिना ही अंधानुकरण करते रह जाते हैं और एक दिन उसके चक्रव्यूह में उलझे चल देते हैं इस दुनिया से। कभी सोच के देखा ही नहीं कि धर्म है क्या तो धर्म निरपेक्षता का दावा कैसे कर सकते हैं, यद्यपि खोखला वादा और दावा दोनों ही कर के हम आत्मिक शान्ति अनुभव करते हैं। 

धर्म की प्रचलित मान्यता के अनुसार हम इसको विभिन्न अनुष्ठानों में बाँध कर मन्दिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा तक सीमित कर देते हैं, जबकि धर्म तो अंतरात्मा से जुड़ा हुआ होना चाहिए। जब हम इस अवस्था में पहुँच जाते हैं तब सबको स्वयं सा मान कर सबके लिए भी संवेदनशील हो जाते हैं, न कि सिर्फ़ अपनी विचारधारा को वरीयता देकर अन्य की उपेक्षा करेंगे। 

धर्म निरपेक्षता का गूढ़ अर्थ यह कभी नहीं है कि हम अपनी प्रचलित धार्मिक परम्पराओं / मान्यताओं का पालन करने के साथ ही दूसरों को उनकी धार्मिक परम्पराओं / मान्यताओं का पालन करने की स्वतंत्रता देते हैं। सच पूछिये तो दूसरों को यह स्वतंत्रता देने के हम अधिकारी न तो हैं और न ही कभी हो सकते हैं। 

मेरे विचारानुसार धर्म निरपेक्षता का सीधा और स्पष्ट मर्म यही है कि दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप किये बिना ही, प्रत्येक व्यक्ति (एक ही परिवार के भी स्त्री-पुरूष दोनों ही) अपने विवेक के अनुसार और सुविधा के अनुसार आत्मिक शान्ति अनुभूत करे।

धर्म निरपेक्ष होने के लिए धर्म की आत्मा को समझना आवश्यक है क्योंकि धर्म का मर्म ही संवेदनशीलता है।

निवेदिता श्रीवास्तव निवी 

लखनऊ

सोमवार, 7 नवंबर 2022

लघुकथा : विवश प्रकृति

तन के साथ ही मानो साँसें भी थक चलीं थीं।डूबती सी निगाहों ने ईश्वर को आवाज़ दी,"तेरे इस जहाँ की रवायतों से मन भर कर, ऊब चुका है। अपना वो जहाँ दिखा दे अब तो।"

सन्नाटे को बेधती सी दूसरी आवाज़ कंपकपा उठी,"ऐसा क्यों कह रहे हो ... अभी तो बहुत कुछ है करने को, बहुत से लम्हे आनेवाले हैं जीने को ... "

लड़खड़ाती सी आवाज़ लरज़ गई,"मैं तो अपने लिए कह रहा हूँ। "

"पूरी ईमानदारी से अपने मन से पूछो कि तुम्हारे बाद ये लम्हे क्या सच में मुझको देख पाएंगे",निगाहें निगाहों का रास्ता रोकने को चंचल हो उठी थीं,"नयनों की ज्योति ही उनको बहुत कुछ दिखाती है वरना तो काला चश्मा ही रह जाता है।"

वेदना की भी मानो रूह बिलख पड़ी,"पर जब यही आँखें नहीं होती हैं तो ये काला चश्मा निरर्थक सा उधर लुढ़कता रहता है। आवश्यक तो दोनों का साथ रहना ही है परन्तु प्रकृति की अनिवार्यता के सामने आने पर दूसरे को भी परम गति जल्दी मिल जानी चाहिए!"

निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

कर सारे श्रृंगार ... सज धज कर के सारे श्रृंगार छत पर गोरी आ जाना। ओढ़ चुनरिया लाल रंग की प्रीतम को तू भा जाना। मेहंदी की लाली हाथों में प्रीत रस हो बातों में धूप दीप अगरु अरु मीठा करवे का थाल सजा लाना धीमे धीमे कदमों से आ पायल तू खनका जाना सज धज कर ... चन्दा छुप छुप जाए बदली में शाखों पत्तों की अंजुली के मन्द मदिर जब पवन चले अम्बर आनन हँस गयी टिकुली जलधार देते चन्दा को चूड़ी कंगन खनका जाना सज धज कर ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी' लखनऊ

 सज धज कर के सारे श्रृंगार
छत पर गोरी आ जाना।
ओढ़ चुनरिया लाल रंग की
प्रीतम को तू भा जाना।

मेहंदी की लाली हाथों में
प्रीत रस हो बातों में
धूप दीप अगरु अरु मीठा
करवे का थाल सजा लाना
धीमे धीमे कदमों से आ
पायल तू खनका जाना
सज धज कर ...

चन्दा छुप छुप जाए बदली में
शाखों पत्तों की अंजुली के
मन्द मदिर जब पवन चले
अम्बर आनन हँस गयी टिकुली
जलधार देते चन्दा को
चूड़ी कंगन खनका जाना
सज धज कर ...
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ                                                      

शनिवार, 2 जुलाई 2022

पत्र कान्हा का बंसरी के नाम ❤️❤️

प्यारी बंसरी !

चौंक गयी होगी तुमको सम्बोधित मेरा पत्र पा कर ... क्या करूँ मेरी प्रवृत्ति ही सबको सुखद अनुभव देना है। तुम भी सोचती होगी कि बाकी सब को तुम याद रहती हो,कोई तुमसे ईर्ष्या करता है तो कोई तुमको चुरा कर छुपाना चाहता है जिससे वो तुम्हारे न होने की रिक्ति को भर सकें , परन्तु मैं बस तुमको थामे हुए घूँट-घूँट भर कर अपनी जीवदायिनी साँसें पीता रहता हूँ। तुम भी जानती हो कि हम एक दूसरे में इतना रच-बस गये हैं कि तुम्हारी प्रतिकृति किसी अन्य के साथ होने पर भी हमारे साथ की ही याद दिलाती प्रतिछवि बनाती है।


सब मुझको छलिया कहते हैं पर मैं तुम्हारी ओट में ही तो अपने उर के भावों को छुपाए मनमोहिनी मुस्कान बिखेरता रहता हूँ और सबको सबका कर्म फल देता हूँ।


चाहें मेरी रानियाँ हों या गोपिकाएं, मैंने किसी से नहीं कहा पर तुमसे कहता हूँ कि तुम हो मेरे होंठों पर, तभी जग में सकारात्मकता और शान्ति बरसती है, नहीं तो सुदर्शन चक्र को भी अपनी तीक्ष्णता दिखाने का अवसर मिल जाता है।


मेरी जीवनदायिनी बाँसुरी ! एक बात मानोगी तुम सदैव मेरे अधरों पर ही सज्ज रहना जिससे मेरे हाथ तुम्हें ही सम्हाले रहें और कभी सुदर्शन चक्र या शारंग (मेरा धनुष) नहीं उठाएं और दुरात्मा भी पापकर्मों को भूल कर धरती को भी शान्ति दें ।

तुम्हारा कान्हा ❤️❤️

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 

#लखनऊ

शुक्रवार, 13 मई 2022

पीड़ाओं से मुक्त कर !

ईश्वर हे जगदीश्वर

पीड़ाओं से मुक्त कर !


स्वस्ति दे आश्वस्ति दे

सुख का इक स्वर दे !


राह नई है चाह कई हैं

पीड़ा की राह सुरमई है !


जीवन मोहभरी माया है

लालसाओं ने भरमाया है !


बाधाओं की बगिया हो

या तूफ़ानों की रतिया हो !


आस यही विश्वास यही

हर पल की अरदास रही !


अन्तिम साँस पर मिलेगा तू

अपनी छाया में रखेगा तू ! 

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 

#लखनऊ

बुधवार, 11 मई 2022

बिन्दु बिन्दु कर झरती जाये ...



बिन्दु बिन्दु कर झरती जाये 

यात्रा ये करती जाये


निरी अंधेरी इस गुफ़ा मे

सूर्य किरण सी दिखती है

कंकड़ पत्थर चट्टानों से 

राह नयी तू गढ़ती है

सर्पीली इस पगडण्डी से

प्रपात बनी उमगती है 

बिन्दु बिन्दु ... 


कन्दराओं से बहती निकल 

सूनि वीथि तुझे बुलाये

विकल विहग की आये पुकार

रोक रहे बाँहे फैलाये 

लिटा गोद में सिर सहलाती

थपकी दे लोरी गाये

बिन्दु बिन्दु  ...


गर्भ 'तेरे जब मैं आ पाई

प्यार सदा तुझ से पाया

अपनी सन्तति को जनम दिया

रूप तेरा मैंने पाया 

तुझसे जो मैं बन निकली थी 

गंगा सागर हम आये 

बिन्दु बिन्दु ....

.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

शनिवार, 7 मई 2022

लघुकथा : अधूरा परिवार

 अधूरा परिवार


म्लान मुख ,नत नयन सिसकती वीणा सी शुचि बिखरी हुई अपने कमरे में बैठी थी। आखिर वह भी कब तक परम्परावादी सोच की सड़न को अपनी जिह्वा से उगलते लोगों के सम्मुख चुप्पी साधे खड़ी रहती क्योंकि परम्पराओं को बहुओं का बोलना बहुत खलता है। शुचि के मामले में तो करेला और नीम चढ़ा वाली कहावत चरितार्थ होती थी। तीन-तीन बेटियों की माँ को साँस लेने देना ही बहुत बड़ा एहसान था।

आज तो मायके आयी हुई चचेरी ननद भी ,बेटे की माँ होने के गुमान में ,ताने देते परिजनों की टोली में सम्मिलित हो गई थी,"चाची! कब तक इंतजार करोगी ? तुम्हारी इस बहुरिया से वंश चलनेवाला पोता न मिलने का। मेरी मानो भाई की दूसरी शादी कर ही दो अब।"

शुचि से जब बिल्कुल ही सहन न हुआ तो वो वहाँ से अपने कमरे में भाग कर कटे पेड़ से ढ़ह गयी थी। तभी उसकी बड़ी बेटी सोनालिका माँ के अनवरत बहते हुए आँसुओं को पोछते-पोछते बाहर जा कर दादी के सामने खड़ी हो गयी,"दादी! फूफा जी की भी दूसरी शादी करवा दो। बुआ भी तो परिवार नहीं पूरा कर पा रही हैं, इनके भी तो सिर्फ़ दो बेटे ही हैं,बेटी तो है ही नहीं।"
#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी
#लखनऊ

रविवार, 1 मई 2022

ममता की दस्तक

अनाड़ी दुनियादारी में

उलझ रही थी जिम्मेदारी में

कुछ नए तो कुछ पुराने थे

रिश्तों की महकी क्यारी में !


उन धागों को सम्हाल रही थी

सपने नयनों में पाल रही थी

नन्हे कदमों ने दी जब दस्तक

ममता का झूला डाल रही थी !


बातें लगतीं कितनी अनजानी 

दिल करता अपनी सी मनमानी

हर पल जीवन बदल रहा था

लिख रहा था इक नई कहानी !

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी'

#लखनऊ

मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

ज्ञान और बुद्धि

 

जन्म से मृत्यु तक रहते दोनों संग

दोनों की लयबद्ध ताल भरती उमंग

दोनो दो पहलू हैं एक ही विचार के 

ज्ञान और बुद्धि का संतुलन करता दंग!

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बुद्धि और ज्ञान ,दोनों चलते साथ - साथ

बुद्धि थाहे ज्ञान को ,पकड़े उसका हाथ

सही समय दें ज्ञान ,अनुभव कराती बुद्धि

अहंकार के भाव को ,वह चढ़ने न दे माथ !

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सन्त ज्ञानी कहते ,बुद्धि की महिमा अनन्त

रची जब रावण - संहिता ,तब मन से था सन्त

अहंकार ज्ञान पर छा गया ,करता गया दुष्कर्म

महाज्ञानी रावण का ,हो गया तब दारूण अन्त !

*******************************

निर्गुण और सगुण का करना क्या विवाद 

दोनों परस्पर एक हैं यही है अनुनाद

मन और आत्मा जैसे हैं ये दोनों ही एक

ज्ञान अकसर बुद्धि से करता यही संवाद ! 

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी

#लखनऊ


बुधवार, 20 अप्रैल 2022

निगाहें न चुराया करो ...

 बातों से जानम न भुलाया करो

ख्वाबों में आ कर न सताया करो।

मिल जाओ कभी दिल के रस्ते पे
देख मुझे निगाहें न चुराया करो।

उलझनें जब सतायें ज़िन्दगी की सनम
रूख़ से परदा जरा तुम हटाया करो।

दरमियाँ हमारे हैं फ़ासले बहुत
तुम कदम इधर तो बढ़ाया करो।

पीर तेरी सताती है इस दिल को बहुत
कभी पीर सा मुझे भी मनाया करो।

दोष मेरे गिनाता है ज़माना बहुत
कभी हाल दिल के तुम भी सुनाया करो।

परस्तिश तुम्हारी की हमने बहुत
जानेजां #निवी को भी दिल मे बसाया करो।
#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी
#लखनऊ

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

लोरी : नयनन में सपन ...

निन्दरिया आ जा रे तू ,

नयनन में सपन सजा जा रे तू !


पलकन की डगरन पर तू

ममता की धड़कन में तू

जीवन की आशा मुस्काये

ममता की परिभाषा है तू

चन्दनिया महका जा रे तू !

नयनन में ...


आँचल की छाया मैं कर दूँ

बाँहों में तुझको मैं भर लूँ

सपनों सी मीठी हो दुनिया

फूलों से तेरी झोली मैं भर दूँ

कोयलिया लोरी सुना जा रे तू !

नयनन में ... 

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 


बुधवार, 13 अप्रैल 2022

करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

 आ गयी जीवन की शाम

करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

रवि शशि की बरसातें हैं
अनसुनी बची कई बातें हैं
प्रसून प्रमुदित हो हँसता
भृमर गुंजन कर कहता
किस ने लगाए हैं इल्जाम
करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

कुछ हम कहते औ सुनते
बीते पल की थीं सौगाते
प्रणय की नही अब ये रजनी
छुड़ा हाथ चल पड़ी है सजनी
समय के सब ही हैं ग़ुलाम
करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

जाती हूँ अब छोड़ धरा को
माटी की दी बाती जरा वो
जर्जर हो गयी है अब काया
मन किस का किस ने भरमाया
तन के पिंजरे का क्या काम
करती हूँ अन्तिम प्रणाम!
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ

रविवार, 10 अप्रैल 2022

अलबेला सपना !

सजा रही अलबेला सपना

मन आशा से दमक रहा

*
राह बहुत हमने थी देखी
आन विराजो रघुनन्दन
फूल चमेली बेला भाये
लाये अगरु धूप चन्दन
मंगल बेला अब है आई
खुश हो घर गमक रहा है !
*
रात अमावस की काली थी
निशि शशि ने आस सजाई
राह प्रकाशित करनी चाही
चूनर तारों भर लाई
सुमन मेघ बरसाने आये
बन साक्षी अब फलक रहा !
*
कन्धे पर हैं धनुष सजाये
ओढ़ रखा है पीताम्बर
सुन्दर छवि है जग भरमाये
नाच रहे धरती अम्बर
आज महोत्सव अवध मनाये
दीवाली सा चमक रहा !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

शुक्रवार, 25 मार्च 2022

अथ नाम कथा

#अथ_नाम_कथा

अपने नाम ,या कह लूँ कि व्यक्तिगत रूप से सिर्फ़ अपने लिये कभी सोचा ही नहीं।जीवन जब जिस राह ले गया सहज भाव से बहती चली गयी। 

अब जीवन के इस संध्याकाल में जब मिसिज़ श्रीवास्तव के स्थान पर स्वयं के लिए #निवी या #निवेदिता का सम्बोधन पाती हूँ तो सच में मन को एक अलग सा ही सुकून मिलता है और इन्हीं में से किसी लम्हे ने दस्तक दी थी कि यह नाम मुझे मिला कैसे!


चार भाइयों के बाद मेरा जन्म हुआ था।सबकी बेहद लाडली थी और जितने सदस्य उतने नाम पड़ते चले गये,परन्तु उन सब के दिये गए नामों पर भारी पड़ गया ,घर में काम करनेवाली सहायिका ,हम सब की कक्को का दिया नाम। उन्होंने बड़े अधिकार से सबको हड़का लिया था,"हमार बहिनी क ई का नाम रखत हईं आप सब। हमार परी अइसन बिटियारानी के सब लोग बेबी कह।" इस प्रकार पहला नाम 'बेबी' रखा गया 😄 


इस बेबी नाम के साथ हम दुनिया के मैदान में तो आ नहीं सकते थे, तो फिर से एक नाम की तलाश शुरू हुई।सभी अपनी पसन्द के नामों के साथ फिर से आमने-सामने थे। 


अबकी बार सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि सभी लोग चिट पर अपनी पसन्द के नाम लिख कर मेरे सामने रख दें और मैं जो भी चिट उठा लूंगी वही नाम रखा जायेगा।


दीन-दुनिया से बेखबर ,सात-आठ महीने की बच्ची के सामने बहुत सारी चिट आ गयी, सभी अपनी तरफ से होशियारी दिखा रहे थे कि उनकी चिट ऊपर रहे और उठा ली जाये ... पर इस बच्ची का क्या करते उसने करवट बदली और ढ़ेरी के नीचे से 'निवेदिता' नाम की चिट निकाल ली। पूरे होश ओ हवास में, इस बिन्दु पर मैं ज़िम्मेदारी लेती हूँ कि अपना निवेदिता नाम मैंने खुद रखा 😊 


स्कूल/ कॉलेज में भी निवी, दिवी,नीतू,तिन्नी जैसे कई नामों से पुकारा सबने।जन्म के परिवेश ने सरनेम 'वर्मा' दिया जिसको विवाह ने बदल कर 'श्रीवास्तव' कर दिया।


नाम बदलने का सिलसिला यहीं नहीं थमा।लेखन तो बहुत पहले से ही करती थी परन्तु जब मंचो की तरफ़ रुख किया, तब उपनाम रखने की जरूरत अनुभव हुई। मेरी मेंटोर, जिन्होंने मुझको मंच का रास्ता दिखाया, उनका भी नाम 'निवेदिता श्रीवास्तव' ही था। एक साथ रहने पर हम तो मजे लेते पर एक से नाम सबको कन्फ्यूज भी खूब करते थे। इस उलझन से बचने के लिये मेरी वरिष्ठ ने अपने नाम के साथ 'श्री' जोड़ा और मैंने 'निवी' ।


जब थोड़ी समझ आयी,तब इस नाम की महान विभूतियों के बारे में भी जाना और एक अनकही सी ज़िम्मेदारी आ गयी कि बेशक मैं उनके जैसी कुछ विशिष्ट न बन पाऊँ पर जितना सम्भव होगा उतना सभो में सकारात्मक भाव भरूँगी और कभी भी किसी को धोखा नहीं दूँगी।

           #निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 

            #लखनऊ

गुरुवार, 24 मार्च 2022

मेरी अनलिखी सी कविता!


लेखनी ने कहा
आज तुम लिखो
एक कविता
कुछ यादों भरी
कुछ भावों भरी!

पन्ने सारे कोरे रह गए
कहीं सूख चली थी
लेखनी की स्याही
तरलता की चाहत में!

भटकती गयी कल्पना
कुछ नमी सी बह चली है
पलकों की कोरों से
कपोलों तक की यात्रा में!

अब लेखनी से पूछ रही हूँ
कहीं वही तो नहीं
मेरी अनलिखी सी कविता
जिसने संजो रखे हैं
बिम्ब मेरे हृदय के!
निवेदिता श्रीवास्तव #निवी
#लखनऊ

शनिवार, 19 मार्च 2022

क्यों पूछ्ते हैं ...

 #जय_माँ_शारदे 🙏


#मुक्तपटल_उन्मुक्तमन 


क्यों पूछ्ते हैं बारहा ख्याल मेरा 

इन आँखों में आशनाई रहती है।


वो हँसी रक्स करती है अब भी 

यहीं कहीं यादों में अरुणाई रहती है।


कभी थामा था जिन नज़रों ने मुझ को 

उसकी निगाहों तले अमराई रहती है।


मेरी यादों में बसता है समंदर गहरा 

इन बन्धनों में ही #निवी बेवफाई रहती है।

  निवेदिता श्रीवास्तव #निवी

      #लखनऊ

शुक्रवार, 11 मार्च 2022

क्षणिकाएं

क्षणिका 


नहीं देखना चाहती तुमको

रूह भी तड़पी है 

तेरी बेवफ़ाई पर

माफ़ कर दिया तुमको

हाँ! इश्क़ किया है तुमसे !


***

चाहतें बेपनाह 

यादें बेलग़ाम

इश्क़ लापरवाह !

***

चाहतें सुरसा सी

लपट सी धधक रही 

कफ़न के बाद भी 

चाहत लकड़ी की

या दो गज़ ज़मीं!


***

रिसती साँसों की

सुराखों भरी 

फ़टी जेब सी ज़िन्दगी

वक़्त किसका हुआ!

  ... निवेदिता #निवी 

        #लखनऊ

मंगलवार, 8 मार्च 2022

एक चिंगारी ...

एक चिंगारी ...

निशि दिवस की उजास बन
रवि शशि की किरण वह प्यारी थी,
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
*
जून माह इतना इतराता इठलाता
जन्म लिया था तभी इस चिंगारी ने।
अमृतसर की शौर्य भूमि ने अलख जगा
साहस भरा हर आती सजग साँस ने।
महिला सशक्तिकरण का प्रतिमान बनी वो
सत्य और कर्त्तव्य की वो ध्वजाधारी थी!
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
*
शिक्षा ले अंग्रेजी साहित्य और राजनीति शास्त्र में
पढ़ा रही थी वह अमृतसर कॉलेज में।
समय ने जब अनायास ही खोली थी पलकें
तब किरण बेदी बनी एक पुलिस अधिकारी।
शौर्य ,राष्ट्रपति ,मैग्सेसे जैसे अनेकानेक
पदकों से सम्मानित जिम्मेदार अधिकारी थी!
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
*
गलती किसी की कभी नहीं थी बख्शी
पार्किंग गलत होने पर उठवाई उसने।
तत्कालीन प्रधानमंत्री की भी गाड़ी थी
ट्रैफिक दिल्ली का भी खूब सुधारा उसने।
बन महानिरीक्षक सँवारा तिहाड़ जेल को उसने
अवमानना के सवाल पर खूब चली वो दुधारी थी!
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
*
जीवन भर कभी हार नहीं उसने मानी थी
मानवता के शत्रुओं से रार खूब ही ठानी थी।
यदाकदा विवादों के उछले छींटे बहुत सारे थे
लिखी गईं उसपर पुस्तकें ,बनी फिल्में भी कई सारी थीं।
नशामुक्ति और प्रौढ़ शिक्षा की अलख जगा
समाज सुधार का प्रयास कर निभाई जिम्मेदारी थी!
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
... निवेदिता 'निवी'
     लखनऊ

शुक्रवार, 4 मार्च 2022

लघुकथा : हौसलों की उड़ान

 हौसलों की उड़ान


अलसायी सी सुबह में आस भरती आवाज़ ने ,मुँदी पलकों से कहा ,"चाय पियोगी ?"


"छोड़ो ... "


"क्यों ... क्या हुआ ?"


"अब कौन चाय पीने के लिए इतने सरंजाम सजाए ",और वह बेबसी से अपने पैरों पर चढ़े प्लास्टर को देखने लगी ।


"हाँ ! ये भी सही कहा तुमने ",नेह की सूर्य किरण मुस्कुरा उठी ,"वैसे भी हम चाय कहाँ पीते हैं ,हम तो एक दूसरे के साथ ज़िन्दगी की यादें पीते हैं । चलो वही पीते हैं ",उसने स्लिपडिस्क के दर्द से कराहती पीठ पर एक हाथ रखते हुए दूसरा हाथ छड़ी की मूठ पर रखा ।


प्लास्टर में बन्द बेबसी को पीछे धकेलती हुई वह भी चन्द्रकिरण सी शीतल हो गई और संकेतिका दिखाती खिलखिला उठी ,"याद रखना कि अब मुझे न तो ब्लैक कॉफी पीनी है और न ही कड़वी - कसैली चाय ... मुझको तो तुम बस अदरख - इलायची सी सौंधी - सौंधी ख़ुशबूदार चाय पिलाना ।"


सिरहाने रखी एलबम से खिलखिलाती तस्वीरों ने उनके हाथों में हौसलों की उड़ान से भर दिया । 

#निवेदिता_निवी 

  लखनऊ

रविवार, 13 फ़रवरी 2022

स्वेटर ज़िंदगी का ...


ज़िन्दगी से यूँ ही दो - दो हाथ कर
लम्हा - लम्हा बुनती गयी इक स्वेटर
दो फन्दे मीठी - मीठी यादों से सीधे हैं
तीन फन्दे दुख में करते चटर - पटर !

दुखते लम्हों को भी था दुलराया
दुखड़ा अपना उन्होंने था सुनाया
एकाकी से लम्हों को बाँहों में भर
इंद्रधनुषी रंग से था चँदोवा सजाया !

अवसान की बेला ले खड़ी है झोली
करती सखियों सी अल्हण ठिठोली
धवल धूमिल पड़े उन रंगों को साधा
बनाने चल पड़ी मैं उस पार रंगोली ! #निवी'

रविवार, 6 फ़रवरी 2022

कैक्टस की बारात !

 

तुम्हारे दर से आ गईं हूँ
ले चुभते काँटे की सौगात !

टीसते छालों का मुँह खोल रही हूँ
काँटों से उकेर रही हूँ जज़्बात !

रोक लो अपनी इस अदा को
ये नन्हे नन्हे काँटे कर रहे हैं बात !

आओ थाम ले एक दूजे का हाथ
बन न जायें कैक्टस की बारात !  #निवी

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

यादों की रम्बल स्ट्रिप

 आज बसन्त पंचमी है ... लग रहा था कि शायद इस बार नहीं हो परन्तु बावरा मन हर साल की तरह इस बार भी यादों की टीस की चुभन अनुभव कर रहा है । सरस्वती पूजा की ,रम्बल स्ट्रिप जैसी एक रील सी चल रही है ।


स्कूल के दिनों में बसन्त पंचमी विशिष्ट होने का आभास देती थी क्योंकि कार्यक्रम में सरस्वती के रूप में ,वीणा के साथ मुझे ही बैठाया जाता था और मैं ही सबको प्रसाद देती थी । बाद के वर्षों में भी पूजन का सिलसिला चलता रहा । 


कालान्तर में जब बच्चों को सरस्वती पूजा के लिए भेजती थी ,तब उनको समझाना पड़ता था कि इस पूजा में ऐसी क्या विशिष्टता है जो उनको स्कूल जा कर पूजा करनी है । 


समय अपनी चाल चलता ,रंगत बदल जाता है और हम हतप्रभ से बस देखते रह जाते हैं । ऐसा ही एक वर्ष आया था जो बसन्त पंचमी के दिन ही हमारे पापा को चिरनिद्रा में सुला गया था और हम सब इंसान होने की विवशता लिए उनको ... नहीं ... उनके शरीर को जाते देखते रह गए । तब से इस दिन पर किसी भी प्रकार की पूजा करने का दिल ही नहीं करता है । 


कभी - कभी मन को मजबूत करना चाहती हूँ कि सम्भवतः पापा ने अपने महाप्रयाण के लिए बसन्त पंचमी को इसलिए ही चुना कि माँ शारदे अपने स्नेहिल अंचल की छाया में मुझ को ताउम्र रखे रहें ! #निवी

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

यादों का प्याला ...

 यादों का प्याला ...

अवनी ओढ़े धानी चूनर
मुरली मधुर बजाए अम्बर !

सतरंगी किरणों का ले सेहरा
सज्ज हुआ तब रवि का चेहरा !

नन्ही नन्ही बुंदियन की माला
नयनन की छलकी तब हाला !

धीर धरें कैसे साजन सजनी
प्रणय की पायल है बजनी !

कलियाँ कोमल खिलने आईं
मधुर मिलन की ऋतु गहराई !

यादों से भर रहा है प्याला
नैन बने प्रिय की मधुशाला !   निवी

रविवार, 23 जनवरी 2022

सिरहाने धरी हथेली ...

सिरहाने धरी हथेली की 

लकीरों में छुप के बैठे हुए !


पूरनम रेशों की तासीर में

कुछ अल्फ़ाज़ थे गुंथे हुए !


कहीं कुछ दम है घुटता सा

जैसे हो कोई साँसें रोके हुए !


पलकों ने नयन को है यूँ छुआ

चाँदनी खिली चंदोवा सँवारे हुए !


सामने रख दूँ जो खिली हथेली

गुल नजर आएंगे महकते हुए ! #निवी

शनिवार, 22 जनवरी 2022

लॉक डाउन समस्या या समाधान !

 डाउन समस्या या समाधान

आम जन की लापरवाही ने पिछले दोनों कोरोना काल में वायरस की विभीषिका को भयावह बना दिया था । ये ऐसा दौर था जब एक तरह से इंसानियत के ऊपर से विश्वास हट गया था और अधिकतर आत्मकेंद्रित हो कर रह गए थे । किसी की पीड़ा में ,संवेदना से उसके कन्धों पर हाथ रखने के स्थान पर ,अपने घरों में मास्क और सैनीटाइजर के पीछे छुप जाते थे । इसको गलत्त भी नहीं कहूँगी क्योंकि अपनी सुरक्षा भी हमारी ही ज़िम्मेदारी है ।


अब इस लहर के तीसरे दौर में ,निश्चय ही एक बार पुनः बेहद संजीदगी से यह सोचने की आवश्यकता है कि हर बार कोविड की विभीषिका बढ़ने पर लॉक डाउन लगाना ही इकलौता समाधान है क्या ! 


लॉक डाउन लगने पर जीवित रहने के लिए ,रोज कूआँ खोदनेवाला श्रमजीवी वर्ग ,अपने परिजनों की दैनिक आवश्यकताओं के अपूर्ण रह जाने से हताश और विवश हो नकारात्मकता से भर जाता है । उनकी सहायता के लिए विभिन्न संस्थाएं काम करती हैं ,परन्तु सीमित संसाधनों में व्यवहारिक धरातल पर वो भी कितनी सहायक हो सकतीं हैं ,ये हम सब भी जानते हैं ।


इस वर्ग से इतर ,साधन संपन्न अन्य लोग भी मानसिक शून्यता की स्थिति में पहुँच जाते हैं । उनकी स्थिति उस पालतू पक्षी जैसी हो जाती है जिसके साफ़- सुथरे और चमकदार पिंजरे में खाने - पीने का सामान रहता है ,तब भी वह बेचैनी में चीखता रहता है । समझ लीजिये कि हममें से अधिकतर की यही स्थिति हो गयी थी ।


हम को इसका स्थायी समाधान खोजना होगा । मेरे विचारानुसार तो लॉक डाउन से बेहतर होगा कि हम मास्क और सैनिटाइज़ेशन की सावधानी बरतें । सबसे आवश्यक है कि अनावश्यक रूप से बाहर न जाएं कि कभी कभार ,स्थितियाँ सामान्य होने पर बाहर निकल सकें । पारिवारिक कार्यक्रमों को, मात्र परिवार तक ही सीमित कर लें ,तब भी एक - दूसरे से संक्रमित होने का भय और संकट कम हो जायेगा । 


अतः लोगों के अनावश्यक विचरण और एकत्रित होने पर लॉक डाउन लगाना चाहिए ,न कि व्यवसाय इत्यादि दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए घरों से बाहर निकलने पर । #निवी

गुरुवार, 6 जनवरी 2022

बड़ा आसां है चाय बनाना !

बड़ा आसां है चाय बनाना

कभी तो चाय बनाओ
कभी तो हमें पिलाओ
बड़ा आसां है चाय बनाना !

पैन चाय का उठा लाओ
चाय की छन्नी भी खनकाओ
पानी लाना भूल न जाना
बड़ा आसां है चाय बनाना !

अदरख इलायची की अदहन
चाय पत्ती औ चीनी के बरतन
पतीला दूध का भी ले आना
बड़ा आसां है चाय बनाना !

भावनाओं को जगाओ
चूल्हा गैस का जलाओ
दो कप पानी खौलाना
बड़ा आसां है चाय बनाना !

रंगत जीवन में भर जाये
लिकर को साथ दूध का भाये
मिठास बातों में बसाना
बड़ा आसां है चाय बनाना !

चाय प्याले में छलकाओ
बदली यादों की बरसाओ
चाय तो बनी है इक बहाना
साथ हमें है जीवन बिताना
बड़ा आसां है चाय बनाना ! #निवी

शनिवार, 1 जनवरी 2022

हाइकु : नववर्ष की दुआ

लम्हे कहते 

यादें समेट लेते

बीतते पल !


आज था कल

कल बना है आज

सच का पल !


दुआ है मेरी 

शुभ हो कल्याण हो 

सभी साथ हों ! #निवी