लघुकथा : सौगात
सुवर्णा शान्त भाव से घर को गुंजायमान करती अपने परिवार और मित्रों की आवाजें सुन रही है । सभी जैसे प्राण प्रण से एक दूसरे को सहयोग करते हुए उसके षष्ठिपूर्ति उत्सव को सफल बनाने के लिये प्रयासरत हैं । सच उसको बहुत अच्छा लग रहा था कि इतने समय बाद पूरा परिवार इकट्ठा हुआ है ।
दिन की पूजा के बाद ,शाम की पार्टी की तैयारी के लिये कर्मचारियों को निर्देश दे कर सब उस के पास आ गये और अपने - अपने उपहार उसको दिखाने लग गये । आखिर कल सुबह ही तो सब वापस जानेवाले थे । वह भी बच्चों में बच्चा बनी उनकी लायी हुई चीजों को देख कर तारीफ भी करती जा रही थी । पर मन कुछ खोया - खोया सा लग रहा था ।
उसकी छुटकू सी पोती इरा ने उसके गले में हाथ लपेटते पूछ पड़ी ,"दादी माँ ! आपको ये सब उपहार नहीं पसन्द आये न ... छोड़िये इन लोगों को आप मुझे बताइये कि आपको क्या चाहिए मैं लाऊँगी न ... "
सब उसकी बात सुन कर हँस पड़े ,परन्तु उन्होंने इरा को गोद में दुलराते हुए डबडबा गयी आँखों से कहा ,"आज तक सबने मुझको बहुत सारे उपहार दिये ,परन्तु सब अपनी ही पसन्द के ले आते रहे । मुझसे किसी ने भी मेरी पसन्द पूछा ही नहीं ... जानती है इरु मुझको कभी भी ये सब चीजें नहीं चाहिए थीं । मुझको तो सबका सिर्फ थोड़ा सा समय चाहिए था । जानती हूँ ,सब बहुत व्यस्त रहते हैं अपने काम और जीवन में ,पर एक फोन ... वो भी चन्द लम्हों का ,जिसमें उनकी आवाज सुनाई दे जाये ... औरर कोई खास बात नहीं बस यह एहसास चाहिए था कि उनके जीवन में मेरी भी जरूरत है । "
..... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
सुवर्णा शान्त भाव से घर को गुंजायमान करती अपने परिवार और मित्रों की आवाजें सुन रही है । सभी जैसे प्राण प्रण से एक दूसरे को सहयोग करते हुए उसके षष्ठिपूर्ति उत्सव को सफल बनाने के लिये प्रयासरत हैं । सच उसको बहुत अच्छा लग रहा था कि इतने समय बाद पूरा परिवार इकट्ठा हुआ है ।
दिन की पूजा के बाद ,शाम की पार्टी की तैयारी के लिये कर्मचारियों को निर्देश दे कर सब उस के पास आ गये और अपने - अपने उपहार उसको दिखाने लग गये । आखिर कल सुबह ही तो सब वापस जानेवाले थे । वह भी बच्चों में बच्चा बनी उनकी लायी हुई चीजों को देख कर तारीफ भी करती जा रही थी । पर मन कुछ खोया - खोया सा लग रहा था ।
उसकी छुटकू सी पोती इरा ने उसके गले में हाथ लपेटते पूछ पड़ी ,"दादी माँ ! आपको ये सब उपहार नहीं पसन्द आये न ... छोड़िये इन लोगों को आप मुझे बताइये कि आपको क्या चाहिए मैं लाऊँगी न ... "
सब उसकी बात सुन कर हँस पड़े ,परन्तु उन्होंने इरा को गोद में दुलराते हुए डबडबा गयी आँखों से कहा ,"आज तक सबने मुझको बहुत सारे उपहार दिये ,परन्तु सब अपनी ही पसन्द के ले आते रहे । मुझसे किसी ने भी मेरी पसन्द पूछा ही नहीं ... जानती है इरु मुझको कभी भी ये सब चीजें नहीं चाहिए थीं । मुझको तो सबका सिर्फ थोड़ा सा समय चाहिए था । जानती हूँ ,सब बहुत व्यस्त रहते हैं अपने काम और जीवन में ,पर एक फोन ... वो भी चन्द लम्हों का ,जिसमें उनकी आवाज सुनाई दे जाये ... औरर कोई खास बात नहीं बस यह एहसास चाहिए था कि उनके जीवन में मेरी भी जरूरत है । "
..... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'