बेबसी भटक रही थी और जीवन की लिप्सा उसकी आँखों में करवटें ले रही थी । अनजान हाथों ने उसकी भटकन को एक घर का आसरा दिया । पर ये क्या ... हर दिन एक नया पर्दा ... एक नया ही चेहरा ... बेबसी पीड़ा में बदल गयी और जीवन जीने की जिजिविषा किन्ही बेनाम अंधी गलियों में खो गयी ।
एक दिन संवेदना ने पीड़ा ने गिरहें खोलने की कोशिश की ,"सुनो तुम्हारा नाम क्या है ?"
झुकी हुई पलकों ने उठते हुए पूछ ही लिया ,"नाम से क्या करना ,कामवाला नाम बता देती हूँ शायद तुम्हारा काम चल जाये ... "
संवेदना ठिठक गयी ,"क्या मतलब ... ?"
विद्रूप हँस पड़ा ,"हाँ ! मेरा कामवाला नाम वेश्या है ।"
विस्फारित सी आँखें जैसे अपने कोटरों से निकल पड़ी हों ,"ऐसे खुद की मजबूरी और परिस्थितियों की उलझन में अपना ही तिरस्कार क्यों कर रही हो ? अच्छा जो तुम्हारे पास आते हैं उनका भी कोई ऐसा ही नाम होगा न ?"
पीड़ा सच का आईना थामे ठठा पड़ी ,"इस पुरुषवादी समाज में नाम सिर्फ हम औरतों का होता है ... बदनाम और गलत्त सिर्फ़ हम औरतें होती हैं ... पुरूष तो अपनी जरूरत पूरी करने आता है न ,उसका नाम नहीं मनोवृत्ति होती है ... सिर्फ़ मर्द की !"
#निवी