बुधवार, 23 जुलाई 2014

मेरी आँखें सोना चाहती हैं .......


वो दूर क्षितिज पर 
एक उजला साया सा दिखा 
अचंभित है मन बावरा 
वो दूर उड़ता उजला लम्हा 
रेशा - रेशा बादल है 
या कहीं उठती - गिरती 
समुद्री लहरों की 
नमकीन यादों का 
ज्वार  है छाया 
सहम जाते लड़खड़ाते 
कदम खोजते हैं 
अनजानी राहों की 
धूमिल सी पगडंडी 
वहीं कहीं ममता की छाँव 
झलक दिखला जाती 
अरे ! वो उजला साया तो है 
माँ , बस तुम्हारे ही  
दुलार बरसाते आँचल का साया 
बहुत दिनों से जागी मेरी आँखें 
अब तो बस थक गयीं हैं 
सोना चाहती हैं 
कभी न खुलने वाली 
नींद में  …… 
काश ! कहीं मिल जाए 
उन सुरीली लोरी की छाँव  …… निवेदिता 

शनिवार, 19 जुलाई 2014

एक दुआ तो माँगो मेरे दिल के सुकून की ………………


आज फिर से मिलेंगी
ढेर सारी दुआयें 
कोई बोलेगा सुखी रहो 
तो तुरंत ही दूजा बोले उठेगा 
दीर्घायु हो जीवन का सुख पाओ 
कोई सौभाग्य की तो 
कोई सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि की 

हर वर्ष की तरह 
मैं फिर से सोच रही हूँ 
क्या दुआओं में सिर्फ यही होना चाहिए 
या कहूँ जीवन के सुख की 
निश्चित निश्चिंतता के लिए 
अनिवार्य कारकों में जरूरी है 
सुख ,सौभाग्य ,सामाजिक प्रतिष्ठा 

काश !
किसी ने  … किसी एक ने भी 
अपनी दुआ में माँगा होता 
मेरे दिल का सुकून  .... 
एक ऐसा सुकून जो मिल सकता है 
सिर्फ तभी जब कभी भी  कहीं भी 
अपने अल्हणपने में बेबाक निकल सके 
हमारी बेटियाँ  .... और हाँ 
अपनी खिलखिलाहट रोकने को 
न ढांकना पड़े अपने चेहरे को  …

आज हर खबर में छाईं हैं बेटियाँ 
पर उनकी उपलब्धि नहीं 
बस पीड़ित हो कर 
वहशियों के मानसिक (?) दिवालियेपन का 
विज्ञापन सा बन गयी हैं बेटियाँ  …
हर बार की तरह 
शहर बदल गया और नाम बदल गया 
बस वहशत के हवाले हो गयीं बेटियाँ  ....…… निवेदिता  !

                                                     

रविवार, 6 जुलाई 2014

तुमने कहा था ......


तुमने कहा था 
निगाहें  फेरने के पहले 
"तुम जैसी बहुत मिल जाएगी "
अरे ये क्या 
मुझको छोड़ने के बाद भी 
चाहत क्यों तुम्हे 
मुझ जैसी की ही  ! 

आँसुओं से भरी 
ये आँखे छुपी रहें
कहीं दिख न जाएँ 
इनकी धारियां कपोलों पर  
हाँ ! बरसात में भीगने का 
एक शौक नया पाला है हमने  !

अब शायद समय ने भी 
ग्रहों की तरह 
बदल ली है 
अपनी चाल
सितारे चाँद को छोड़ 
सूरज के साथ झुलसने को 
अभिशप्त हैं  !


तुमने कहा था 
तुम मेरी दुनिया 
बदल दोगे 
सच ही कहा था 
अब जो दुनिया 
तुमने छोड़ी है मेरे लिए 
उसमें तो तुम ही बदल गए हो  ............. निवेदिता 

बुधवार, 2 जुलाई 2014

आइसक्रीम सा जीवन .....



जीवन अपना 
एक आइसक्रीम जैसा 
इसको तो पिघलना है 
चाहे इसके छोटे टुकड़े कर के 
मुँह में रख लें ,या फिर 
हाथ में थाम कर देखते रहें 
और व्यर्थ जाने दें ...… 

ये जो छोटे - छोटे से पल हैं 
जी चाहे तो जी लो 
जी न चाहे तो बीत जाने दो 
पर पिघली हुई आइसक्रीम 
पिघल कर याद बहुत आती है ..... निवेदिता