मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

लघुकथा : मुआवजा

लघुकथा : मुआवजा
"काकी एक मिनट के लिये बाहर आ जाओ न । देखो ये सब अधिकारी तुमसे मिलने के लिये कब से बैठे हैं । अब तो देखो न मंत्री जी भी आ गये हैं । " अन्विता पड़ोसन काकी को बुलाने बाहर तक आ गयी थी । वो सोच रही थी कि शून्य में खोई काकी कुछ तो बोलें । उस मनहूस पल में फोन ने बोल कर जैसे काकी के सारे शब्दों को छीन लिया था ।
सब कमरे में झाँक कर तरह तरह के प्रयास कर रहे थे उनकी स्तब्धता भंग करने की । अचानक ही मंत्री जी की आवाज आई ,"आप सब परेशान न हों । इनको मुआवजा भी मिलेगा और मैं स्वयं सपरिवार इनके पालन पोषण की जिम्मेदारी लेता हूँ ।"
काकी झपट कर बाहर आ गईं ,"आप या कोई भी क्या मुआवजा देगा किसीको भी । हमारे ही पैसे जो हमने टैक्स में जमा किये हैं वही तो देंगे । कौन सा आप अपनी जेब से दे रहे हैं जो इतने बड़बोले हो रहे हैं । हम सैन्य परिवार हैं जो सम्मान को परिभाषित करते हैं । अगर कुछ कर सकते हैं तो बस यही कर दीजिये कि जब हम आतंकवादियों को पकड़ें तब उनको छोड़ने को विवश मत कीजिये । पत्थरबाजों को पकड़ने के हमारे प्रयास पर हम पर कोर्ट केस न हों । निर्णय लेने में इतनी शिथिलता भी न दिखाइये कि हम बिना युद्ध किये ही भितरघात में विदा हो जाएं । अरे जनाब हमारा चयन और ट्रेनिंग युद्ध के लिए होती है न कि इस प्रकार मरने के लिये । "
.... निवेदिता

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

उम्मीद की गंगा ...

सखी सुनो न ,एक बात बतानी है
बात में न तो राजा है न रानी है

ये जो घुटनों पर रख हाथ उठती है
बहती इनमें भी स्फूर्ति की रवानी है

बन्द धड़कन की,ओढ़ ध्वज रवानी है
आँखों में कैद लहू है ,न समझ पानी है

आँखों की चमक चेहरे की चांदनी है
हर तरफ अब उम्मीद की गंगा बहानी है .... निवेदिता

बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

नमन .... 🙏🌹🌹🌹🌹

धरा को चूमा ,दिलों में बस गए
साँसें थम गयीं ,यादों में बस गए

दिल के इंद्रधनुष ,आसमान में रच गए
तिरंगे के रंग में ,लहू अपना रच गए

पिता के सहारे ,बच्चों की याद बन गए
माँ की आस थे ,देश का विश्वास बन गए

चूड़ी की खनक से ,पायल झनका गए
माँग से सिंदूर उड़ा ,चाँद में चमक गए

यात्रा शेष थी ,तुम अनन्त को चले गए
जयचन्द की करनी ,तुम यूँ भुगत गए .... निवेदिता

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

लघुकथा : ध्वज / तिरंगा



अन्विता ," माँ हम सैनिकों के ऊपर हम अपने राष्ट्रीय ध्वज को क्यों ओढ़ाते हैं । ऐसे तो ध्वज सबका हाथ लग कर गन्दा हो जाएगा । और आप तो कहती हैं कि ध्वज को हमेशा ऊँचा रखना चाहिये ,ऐसे तो वो नीचा हो गया न ।"

 माँ ,"नहीं बेटा सैनिकों को ओढ़ाने से ध्वज गन्दा नहीं होता ,बल्कि उसकी चमक और सैनिकों की शान दोनों ही बढ़ जाती है । हमारा ध्वज सैनिकों का मनोबल ,उनके जीवन का उद्देश्य होता है । जब तक वो जीवित रहते हैं ऊँचाई पर लहराते ध्वज को और भी समुन्नत ऊँचाई पर ले जाने को प्रयासरत रहते हैं । परंतु जब उनका शरीर शांत होता है तब यही ध्वज माँ के आंचल सा उनको अपने में समेट कर दुलारता है । "  ..... निवेदिता

शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

नमन वीरों ....

सिसकी धरा
अनवरत बरसा
कुंठित मन

ध्वज थामे थे
उन्नत हो मस्तक
वीरों नमन

लहू बरसा
साँसे थम गयीं थी
हम तो चले

गर्वित मन
अनगिनत मेडल
विक्षत तन

हरी वसुधा
शोणित है लाल
शर्मिंदा हम ..... निवेदिता