"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
सोमवार, 25 दिसंबर 2017
शनिवार, 23 दिसंबर 2017
माँ ..... पिता ......
माँ कदमों में ठहराव है देती
पिता मन को नई उड़ान देते
पिता मन को नई उड़ान देते
माँ पथरीली रह में दूब बनती
पिता से होकर धूप है थमती
पिता से होकर धूप है थमती
माँ पहली आहट से हैं जानती
पिता की धड़कन आहट बनती
पिता की धड़कन आहट बनती
ये ठहराव ,ये उड़ान क्यों अटकती
हर आहट क्यों धड़कन सहमाती
हर आहट क्यों धड़कन सहमाती
अब न तो दूब है ,न ही धूप का साया
तलवों तले छाले हैं ,सर पर झुलसन
तलवों तले छाले हैं ,सर पर झुलसन
न ही कोई ओर है न ही कोई छोर
कितनी लम्बी लगती सांसों की डोर ...... निवेदिता
कितनी लम्बी लगती सांसों की डोर ...... निवेदिता
शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017
मेरी लाडो ..... मेरा सपना मेरा प्यारा सा सच
स्वागत है स्वागत प्यारी लाडो का
स्वागत दुलारी अदिति का
स्वर्ण कणिका सी तुम
सज जाओ परिवार के मस्तक पर
मिश्री की डली सी तुम
घुल जाओ हमारी धड़कन में
स्वागत है स्वागत प्यारी लाडो का
स्वागत दुलारी अदिति का
सपनों की कली सी तुम
सज जाओ मेरे दुलारे आँचल में
तुम से ही रौशन ये घर
आ जाओ न इस सजीले उपवन में
स्वागत है स्वागत प्यारी लाडो का
स्वागत दुलारी अदिति का ....... निवेदिता
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