शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

हाइकु

मीठी है छूरी

कहते मठाधीश

बनते ईश।


विश्वास पाश

छलिया है प्रकृति

करती नाश।


सदा हँसता

कसौटी पे कसता

दम घुटता।


सुरसा आस

हो रहा सर्वनाश

अबूझ प्यास।


प्रश्नों के घेरे

लगाते हैं पहरे

टूटती आस।


स्वार्थी का स्वांग

दावानल की आग

छाता विराग।


#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी

#लखनऊ

सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

माला में मणियाँ



सामान्यतः किसी भी जाप को करने के लिये माला की आवश्यकता होती है। यह माला रुद्राक्ष की हो सकती है, तुलसी अथवा स्फ़टिक की भी। परन्तु रुद्राक्ष की माला अन्य मालाओं की अपेक्षा श्रेष्ठ होती है, क्योंकि इसमें कीटाणुनाशक शक्ति भी होती है। जप के लिये माला में मणियों की संख्या भी निर्धारित होती है। बिना मणियों की पूरी संख्या के जप नहीं किया जाता है। इसके लिये माला में मणियों की संख्या १०८ निर्धारित की गयी है, परन्तु यह जिज्ञासा भी होती है कि  मणियाँ १०८ ही क्यों ? कम या अधिक क्यों नहीं? इस विषय में धार्मिक ग्रन्थों में अनेक मत हैं।


योग चूडामडी में साँसों के आधार पर १०८ मणियों की संख्या निर्धारित की गयी है। हम २४ घंटों में २१,६०० बार साँस लेते हैं। १२ घंटे का समय अपनी दिनचर्या हेतु निर्धारित है और बाकी के १२ घंटे का समय देव आराधना हेतु। अर्थात १०,८०० साँसों में ईष्टदेव का स्मरण करना चाहिये, किन्तु  इतना समय दे पाना मुश्किल है। अत: अन्त के दो शून्य हटा कर शेष १०८ साँसों में प्रभु स्मरण का विधान बनाया गया है। इसी प्रकार मणियों की संख्या १०८ निर्धारित की गयी है। जप विधान में धीरे-धीरे जप करने का फ़ल सौ गुणा बताया गया  है। १०८ को सौ से गुणा करने से १०,८०० साँसों की निर्धारित संख्या पूरी हो जाती है। अत: माला के १०८ मणियों की संख्या निराधार नहीं है।

   एक अन्य मत के अनुसार हिन्दू धर्म को मानने वाले सूर्य उपासना करते हैं और अर्ध्य देते हैं। सूर्य के १२ भेद होते हैं, उन में बारहवाँ भेद है विष्णु। वह सूर्य ब्रह्म रूप होता है। ब्रह्म का अंक ९ है। इस प्रकार १२ अंक वाले सूर्य का ९ अंक वाले ब्रह्म के साथ गुणा करने पर १०८ संख्या होती है। सूर्यात्मक विष्णु का जप करने का विधान १०८ बार है। इसलिये माला में १०८ मणियों का निर्धारण उचित प्रतीत होता है ।


दूसरी विचारधारा के अनुसार माला में मणियों की संख्या का निर्धारण नक्षत्रों के आधार पर है। नक्षत्र २७ होते हैं और हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं। इस प्रकार २७×४=१०८होता है। नक्षत्रों की माला जहाँ दोनो ओर से मिलती है वहाँ सुमेरु पर्वत है और जप माला में भी सुमेरु होता है। इस तरह माला में मणियों की संख्या १०८ सिद्ध होती है।


एक अन्य विचारधारा के अनुसार ... सॄष्टि  के रचयिता ब्रह्म हैं । यह एक शाश्वत सत्य है। उससे उत्पन्न अहंकार के दो गुण होते हैं, बुद्धि  के तीन, मन के चार, आकाश के पांच,  वायु के छ, अग्नि के सात, जल के आठ और पॄथ्वी के नौ गुण मनुस्मॄति में बताये गये हैं। प्रकृति से ही समस्त ब्रह्मांड और शरीर की सॄष्टि होती है। ब्रह्म की संख्या एक है जो माला मे सुमेरु की है। शेष प्रकॄति  के  २+३+४+५+६+७+८+९=४४ गुण हुये। जीव ब्रह्म की परा प्रकॄति  कही गयी है, इसके १० गुण हैं। इस प्रकार यह संख्या ५४ हो गयी , जो माला के मणियों की आधी संख्या है ,जो केवल उत्पत्ति की है। उत्पत्ति के विपरीत प्रलय / विनाश भी होता है, उसकी भी संख्या ५४ होती है। इस माला के मणियों की संख्या १०८ होती है । माला में सुमेरु ब्रह्म जीव की एकता दर्शाता है । ब्रह्म और जीव मे अंतर यही है कि ब्रह्म की संख्या एक है और जीव की दस ,इसमें शून्य माया का प्रतीक है, जब तक वह जीव के साथ है तब तक जीव बंधन में है। शून्य का लोप हो जाने से जीव ब्रह्ममय हो जाता है।


माला का यही उद्देश्य है कि जीव जब तक १०८ मणियों का विचार नहीं करता और कारण स्वरूप सुमेरु  तक नहीं पहुंचता तब तक वह इस १०८ में ही घूमता रहता है। जब सुमेरु रूप अपने वास्तविक स्वरूप की  पहचान प्राप्त कर लेता है तब वह १०८ से निवॄत्त हो जाता है अर्थात माला समाप्त हो जाती है। फ़िर सुमेरु को लांघा नहीं जाता बल्कि  उसे उलट कर फ़िर शुरु से १०८ का चक्र प्रारंभ किया जाता है।

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी'

#लखनऊ

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

लघुकथा : ध्वज

 लघुकथा : ध्वज 

अन्विता ," माँ हम सैनिकों के ऊपर हम अपने राष्ट्रीय ध्वज को क्यों ओढ़ाते हैं । ऐसे तो ध्वज सबका हाथ लग कर गन्दा हो जाएगा । और आप तो कहती हैं कि ध्वज को हमेशा ऊँचा रखना चाहिये ,ऐसे तो वो नीचा हो गया न।"


 माँ ,"नहीं बेटा सैनिकों को ओढ़ाने से ध्वज गन्दा नहीं होता ,बल्कि उसकी चमक और सैनिकों की शान दोनों ही बढ़ जाती है । हमारा ध्वज सैनिकों का मनोबल ,उनके जीवन का उद्देश्य होता है । जब तक वो जीवित रहते हैं ऊँचाई पर लहराते ध्वज को और भी समुन्नत ऊँचाई पर ले जाने को प्रयासरत रहते हैं । परंतु जब उनका शरीर शांत होता है तब यही ध्वज माँ के आंचल सा उनको अपने में समेट कर दुलराता है।"  

निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

शिवोहम शिवोहम ...

 लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन 

कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!

 

सुमिरूँ तुझको ओ अविनासी

दरस को तेरे अँखियाँ पियासी

पिनाकपाणी जपूँ मैं स्त्रोतम

आओ उमापति मिटाओ उदासी

झुकाए मस्तक करूँ मैं अर्चन!

लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन 

कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!


कामनाओं के बादल घनेरे

मुझको माया हर पल घेरे

वासना के जाल हटाओ

याचना करूँ लगा के फ़ेरे

लगाई आस बनूँ मैं कुन्दन!

लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन 

कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!


नन्दि सवारी सर्प हैं गहने

तेरी महिमा के क्या कहने

छवि अलौकिक नेह बरसे

त्रुटि बिसारो जो हुई अनजाने

कृपा करो हे सिंधुनन्दन!

लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन 

कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!

निवेदिता श्रीवास्तव निवी 

लखनऊ

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

लघुकथा : दूसरा दीया

लघुकथा : दूसरा दीया


दिवी दीप प्रज्ज्वलित करती हुई 'ॐ नमः शिवाय' गुनगुनाती जा रही थी। पास से गुजरते हुए अंकित ने हँसते हुए टोका,"क्या यार कभी तो भोलेनाथ को भी आराम करने दिया करो, जब देखो तब उनको पुकारती रहती हो ... चाय छानते हुए भी ॐ नमः शिवाय और छलक गयी बूँद को साफ़ करते हुए भी ॐ नमः शिवाय ... घर का ताला बन्द करना हो या खोलना ... यहाँ तक कि गेट की घण्टी बजने पर भी, आनेवाले का नाम पूछने या अपने पहुँचने के लिए "आ रही हूँ"  बोलने की जगह भी ॐ नमः शिवाय ही बोलती हो। तुम उनको पुकारोगी नहीं तो क्या वो तुमको देखेंगे नहीं या ध्यान नहीं रखेंगे!"


दिवी की उपस्थिति में जैसे एक दिव्यता खिल गयी,"तुम सब सुन सको सिर्फ़ उतना ही नहीं, मेरी तो साँसों में भी भोलेनाथ की ही अरदास चलती है ... मेरी जाती हुई साँस भी आनेवाली साँस को ॐ नमः शिवाय ही बोल कर स्थान देती है। ऐसा नहीं है कि मेरी पुकार पर ही वो आएंगे, वो तो सदैव हम सभी के साथ हैं, बस हमारे नाम जाप करने से मन भी सात्विक रहता है जैसे एक दिये के नीचे का अंधेरा मिटाना हो तो उसके पास दूसरा दिया रख दो, दोनों के नीचे से कालिमा भाग जाती है ... बस ॐ नमः शिवाय यही दूसरा दिया हैं!" 

निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

लखनऊ