विहस रही बदली वो पगली
यादों की महकी अमराई
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बैठ रहा पाटे पर वीरा
मंगल तिलक लगाये बहना
सुन आँखों से वो बोल रहा
तू ही है इस घर का गहना
जब जब तू घर आ जाती है
आती खुशियाँ माँ मुस्काई।
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मन तरसे अरु आँखें बरसे
विधना ने क्यों रोकी राहें
नाम लिया है कुछ रस्मों का
रोक रखी वो फैली बाँहें
टीका छोटी से करवाना
याद मुझे कर हँसना भाई।
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बीती बात याद जो आये
भर भर जाये मेरी अँखियाँ
इस बरस तू नहीं आयेगी
बता गयी हैं तेरी सखियाँ
एक बार तू आ जा बहना
कर लेंगे हम लाड़ लड़ाई।
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रीत निभाना याद दिलाते
कदम ठिठक बढ़ने से जाये
संस्कारों ने रोक रखा है
चाह रही पर आ नै पाये
पढ़ चिट्ठी अपनी बहना की
भाई की आँखें भर आई।
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ