वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन ...... ये वैसे तो एक गीत की पंक्ति है ,पर मैं कई दिनों से यही सोच रही थी कि सच में ये सम्भव है भी कि छोड़ना सम्भव है क्या ,चाहे वो मोड़ खूबसूरत हो या विवशता .....
अफ़साना है क्या .... क्या उसको सिर्फ एक कहानी मान लिया जाए या फिर कहानी से परे जा कर एक अनुभव या फिर चंद लम्हों की कुछ जीवंत साँसें ..... अफसाना यानि कि कहानी - इसमें तो कुछ चरित्र होते हैं जिसमें एक के मन की बात और परिस्थियाँ दूसरा पहले तो बड़ी ही आसानी से ,जैसे वो सब उसके अपने ही मन में चल रहा हो ,समझ जाता है फिर अचानक से ही वही चरित्र उसी दूसरे की बातों को एकदम से अलग ही रूप ले उसको गलत समझने लगता है .... और उसके बाद कुछ ख़ास नहीं बस वो उस कहानी के लिए एक सा खूबसूरत (?) मोड़ तलाशने लगता है ....
ये मोड़ क्या वाकई खूबसूरत होता है या हो भी सकता है .... जिस भी पल में हम किसी ख़ास को छोड़ने की बात सोच भी सकें वो खूबसूरत हो ही कैसे सकता है .... खूबसूरत का अर्थ ही मुझे तो लगता है वो साथ जिसमें देखी या जी जा रही जिंदगी उन लम्हों की खूबसूरती का एहसास करा सके .... अगर वो साथ ही न रहा तो खूबसूरती कहाँ रह पायी ....
खूबसूरत हम मानते किस को हैं - जो देखने में आकर्षक लगे या जिसका होना ही सब के प्रति सकारात्मकता लाये .... खूबसूरती आँखों से देखने की चीज है या जो रूह को महसूस हो वो है .... आँखों से देखने में जो एक के लिये खूबसूरत है वही दूसरे को साधारण लग सकता है .... रूह के साथ भी ऐसा ही है क्योंकि आत्मिक और अनजाना भी , जुड़ाव हरएक के साथ तो नहीं हो सकता .....
रही बात छोड़ने की तो क्या सच में जिस को हम छूटा हुआ कहते हैं वो हमसे या हम उससे छूट जाते हैं .... जहाँ तक मेरी सोच जाती है तो छूटना तो मैं उसको ही मानती हूँ जिसका अस्तित्व ही मेरे लिए न बचे .... मेरा मतलब सिर्फ उसके दिखने या न दिखने से नहीं है अपितु मेरी किसी छोटे से छोटे नामालूम से लम्हे में भी मैं उस को महसूस न कर सकूँ ,न ही उसकी नकारात्मकता से और न ही नकारे जाने की याद से .... अगर बेसाख्ता से किसी लम्हे में याद भी आ जाये ,बेशक अपनी तमाम कमियों के साथ भी ,तब भी वो छूटा कहाँ .... तमाम लम्हों में सिर्फ छोड़ने का अभिनय ही तो किया जा सकता है पर छोड़ दिया तो नहीं कह सकते .... हाँ औरों से तो कह सकते हैं पर हमारी अंतरात्मा तो सच जानती ही है ....
कल मैंने फेसबुक पर भी एक ऐसा सा ही स्टेटस डाला था और उसकी प्रतिक्रिया भी इनबॉक्स भी और वॉल पर भी यही थी कि खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ देना चाहिए - भइया ने कहा कि क्रमशः लगाकर छोड़ना बेहतर -सखी ने कहा जिस मोड़ पर छूट जाये वही मोड़ खूबसूरत है - पर मुझको अभी भी यही लगता है कि .....
जो छूट जाए वो अफसाना नहीं
छूटने की बात कहे वो दीवाना नहीं
मोड़ जो मुड़ कर मोड़ पर छोड़ दे
मोड़ ही है वो मंजिल तो कभी नहीं
अफ़साना हो अफसानों की बातें करना
न तो छोड़ना आसान है न ही मुड़ना
अंजाम की परवाह करे जो हमेशा
परवाने सी खूबसूरत मुहब्बत नहीं ...... निवेदिता
अफ़साना है क्या .... क्या उसको सिर्फ एक कहानी मान लिया जाए या फिर कहानी से परे जा कर एक अनुभव या फिर चंद लम्हों की कुछ जीवंत साँसें ..... अफसाना यानि कि कहानी - इसमें तो कुछ चरित्र होते हैं जिसमें एक के मन की बात और परिस्थियाँ दूसरा पहले तो बड़ी ही आसानी से ,जैसे वो सब उसके अपने ही मन में चल रहा हो ,समझ जाता है फिर अचानक से ही वही चरित्र उसी दूसरे की बातों को एकदम से अलग ही रूप ले उसको गलत समझने लगता है .... और उसके बाद कुछ ख़ास नहीं बस वो उस कहानी के लिए एक सा खूबसूरत (?) मोड़ तलाशने लगता है ....
ये मोड़ क्या वाकई खूबसूरत होता है या हो भी सकता है .... जिस भी पल में हम किसी ख़ास को छोड़ने की बात सोच भी सकें वो खूबसूरत हो ही कैसे सकता है .... खूबसूरत का अर्थ ही मुझे तो लगता है वो साथ जिसमें देखी या जी जा रही जिंदगी उन लम्हों की खूबसूरती का एहसास करा सके .... अगर वो साथ ही न रहा तो खूबसूरती कहाँ रह पायी ....
खूबसूरत हम मानते किस को हैं - जो देखने में आकर्षक लगे या जिसका होना ही सब के प्रति सकारात्मकता लाये .... खूबसूरती आँखों से देखने की चीज है या जो रूह को महसूस हो वो है .... आँखों से देखने में जो एक के लिये खूबसूरत है वही दूसरे को साधारण लग सकता है .... रूह के साथ भी ऐसा ही है क्योंकि आत्मिक और अनजाना भी , जुड़ाव हरएक के साथ तो नहीं हो सकता .....
रही बात छोड़ने की तो क्या सच में जिस को हम छूटा हुआ कहते हैं वो हमसे या हम उससे छूट जाते हैं .... जहाँ तक मेरी सोच जाती है तो छूटना तो मैं उसको ही मानती हूँ जिसका अस्तित्व ही मेरे लिए न बचे .... मेरा मतलब सिर्फ उसके दिखने या न दिखने से नहीं है अपितु मेरी किसी छोटे से छोटे नामालूम से लम्हे में भी मैं उस को महसूस न कर सकूँ ,न ही उसकी नकारात्मकता से और न ही नकारे जाने की याद से .... अगर बेसाख्ता से किसी लम्हे में याद भी आ जाये ,बेशक अपनी तमाम कमियों के साथ भी ,तब भी वो छूटा कहाँ .... तमाम लम्हों में सिर्फ छोड़ने का अभिनय ही तो किया जा सकता है पर छोड़ दिया तो नहीं कह सकते .... हाँ औरों से तो कह सकते हैं पर हमारी अंतरात्मा तो सच जानती ही है ....
कल मैंने फेसबुक पर भी एक ऐसा सा ही स्टेटस डाला था और उसकी प्रतिक्रिया भी इनबॉक्स भी और वॉल पर भी यही थी कि खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ देना चाहिए - भइया ने कहा कि क्रमशः लगाकर छोड़ना बेहतर -सखी ने कहा जिस मोड़ पर छूट जाये वही मोड़ खूबसूरत है - पर मुझको अभी भी यही लगता है कि .....
जो छूट जाए वो अफसाना नहीं
छूटने की बात कहे वो दीवाना नहीं
मोड़ जो मुड़ कर मोड़ पर छोड़ दे
मोड़ ही है वो मंजिल तो कभी नहीं
अफ़साना हो अफसानों की बातें करना
न तो छोड़ना आसान है न ही मुड़ना
अंजाम की परवाह करे जो हमेशा
परवाने सी खूबसूरत मुहब्बत नहीं ...... निवेदिता