कुछ भी बोलने में सबसे प्रमुख कारक जीभ है । इसका उपयोग कितनी सावधानी से करना चाहिये , इसका ज्ञान हमें ईश्वर ने इसकी रचना करते समय ही दे दिया है । इसको दो तालों में बंद कर के भेजा है ।
पहला ताला होंठ है और दूसरा ताला है दांत । पहला ताला अपेक्षाकृत सरल है , किंतु दूसरा द्वार तोबहुत कठोर है जो ३२ पहरेदारों के घेरे में रहता है ।
अगर पहला द्वार ही बहुत कठोर होता तो शायद हम असामाजिक और आत्मकेंद्रित ही रहते क्योंकि
फ़िर हम किसी से कुछ भी बोल ही नहीं पाते । कभी कुछ अनर्गल प्रलाप करने पर विवेक की चाबुक
पडने पर दांत मजबूती से बंद हो कर कुछ भी बोलने से रोक देते । इसलिये सजग रहते हुये जीभ का
प्रयोग करना चाहिये ।