सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

एक सुराख ......



बेसबब
यूँ ही सी
एक चाहत
ने सरगोशी की
आज
अपनी सारी
उलझनों
या कह लूँ
दुश्वारियों को
समेट कर
सहेज लेती हूँ
अपने ही
पोशाक की
दराजों (जेबों) में
बस तू इतनी ही
रहमत बरसाना
उन दराजों में
अपनी नियामत का
एक सुराख बना देना  ..... निवेदिता 

सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

टीस जगाते शब्दों के घाव

शब्दों के दांत नहीं होते है
लेकिन शब्द जब काटते है
तो दर्द बहुत होता है 

और कभी कभी
न दिख पाने वाले घाव 

इतने गहरे हो जाते है कि
जीवन समाप्त हो जाता है
बस ये टीस जगाते 

घाव कभी नहीं भरते............ निवेदिता 

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

उदासी की क्लियरेंस सेल ......



रोज ही देखती हूँ
विज्ञापन
बाजारों में
लगी हुई सेल का 
कभी कपड़ों की
तो कभी बर्तन की ,
कभी मकान की
तो कभी दूकान की भी ,
कभी तंत्र - मंत्र की
तो कभी सौष्ठव बढ़ाने की ,
रोज ही तलाशती हूँ
काश  ....
कहीं दिख जाए
एक ऐसी भी सेल
जो बन  सके
अंतमन में बसेरा बनाये बैठी
उदासी की  क्लियरेंस सेल  ...... निवेदिता