दोहा गीतिका
अवनी धमनी सी सखी ,प्रेम सुधा बरसाय ।
दूषित उसको क्यों करो ,सुन लो ध्यान लगाय ।।
जब जब काटो पेड़ को ,नई लगाओ पौध ।
शुद्ध हवा कैसे मिले ,धरा सूख जब जाय ।
बात प्रदूषण की करें , सुनो लगा कर ध्यान ।
उद्द्यम हमने क्या किया ,जरा सोच समझाय ।।
पानी घटता जा रहा ,बुझे नहीं अब प्यास ।
फेंक रहे क्यों व्यर्थ ही ,कुछ लो अभी बचाय ।।
धरा सोच कर रो रही ,आँसू बहे अपार ।
लाल बनो तुम मातु के ,लोचन नीर बहाय ।।
मलबे से मत तुम भरो ,कैसे ले वो साँस ।
मन उदास उस का हुआ ,तुम दो उसे हँसाय ।।
..... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'