"महाभारत" , ग्रन्थ का जब भी जिक्र होता है ,हम साधारणतया इसके विभिन्न चरित्रों के बारे में ,धर्म पर अधर्म की विजय के रूप में ,अपनों के प्रति अंधे मोह के बारे में .... कई तरह से विवेचना करते हैं | आज इसके बारे में सोचते हुए लगा कि ये इन सबसे अलग एक ऐसे युग का परिचायक है जिसको हम " प्रतिज्ञा , प्रतिशोध और कभी - कभी प्रतिबद्धतता" के युग का नाम दे सकते हैं | इसके सभी मुख्य चरित्र किसी न किसी बात से आहत हो कर प्रतिशोध लेने के लिए प्रतिज्ञा करते हैं ,फिर प्राण-प्रण ( बेशक प्रण उनका रहता था पर प्राण दूसरों का ) से उसको पूरा करने में जुट जाते थे |
इतिहास के ,एक तरह से सर्वमान्य ,प्रतिज्ञा-पुरुष "भीष्म" अपने पिता शान्तनु की सत्यवती के प्रति आसक्ति के परिणामस्वरूप उपजी स्थिति में ,उनके प्रति अपनी प्रतिबद्धतता के फलस्वरूप ब्रम्हचारी रहने की प्रतिज्ञा कर बैठे | तथाकथित विद्वानों ने महाभारत का मूल कारण द्रौपदी को और राजसत्ता के प्रति दुर्योधन की आसक्ति को माना है | अगर निष्पक्ष हो कर देखा जाए तो भीष्म की अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा बड़ी-बड़ी राजसत्ताओं के विनाश का कारण बने इस युद्ध का मूल कारण थी | भीष्म अपनी प्रतिज्ञा के फलस्वरूप एक तरह से राज्य से विरक्त हो गये थे | उनकी उपस्थिति राजदरबार में रिक्तस्थान की एक निष्प्रयोज्य पूर्ती मात्र बन कर रह गयी थी | चाहे वो चौसर की सजी हुई बिसात के समय हो , अथवा द्रौपदी के चीर - हरण के समय हो | हस्तिनापुर के बँटवारे के समय देखें ,अथवा अभिमन्यु के वध के समय ,भीष्म पूरी तरह से निष्क्रिय ही दिखे ,तथाकथित व्यवस्था के प्रश्न उठा कर अपनी उपस्थिति ही जतायी व्यवस्थित कुछ भी न कर पाए !
दूसरी प्रतिज्ञा भीष्म द्वारा अपने अपहरण के बाद सौभ नरेश शाल्व और भीष्म के द्वारा अस्वीकारे जाने पर काशी नरेश की पुत्री अम्बा ने की थी | उसने भीष्म के विनाश की , अपनी प्रतिज्ञा की पूर्ती के लिए तत्कालीन राज सत्ताओं को संगठित कर के भीष्म और हस्तिनापुर के विरुद्ध विषम वातावरण तैयार किया | हस्तिनापुर की निरंकुशता से असंतुष्ट राज्य ,अकेले इतनी बड़ी राजसत्ता का विरोध करने का साहस न जुटा पाते ,परन्तु अम्बा द्वारा संगठित हो कर पांडवों के पक्ष में एकत्रित हो गये |
तीसरी प्रतिज्ञा द्रौपदी ने की थी अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए | विवाह के बाद से ही अपमानजनक सम्बोधनों से क्षुब्ध द्रौपदी की सहनशीलता भी चीर हरण के समय कौरवों के विनाश की प्रतिज्ञा लेने के लिए मजबूर हो गयी ...... अपने खुले केशों को दू:शासन के लहू से सिंचित करने तक अपने केशों को खुला रखने की प्रतिज्ञा द्रौपदी ने भी ली !
भीष्म की प्रतिज्ञा के बाद जो प्रतिज्ञा इस संहारक युद्ध का कारण बनी ,वो थी कर्ण की प्रतिज्ञा ! कर्ण ने समाज द्वारा धिक्कृत होने के बाद पायी , दुर्योधन की मैत्री को अपनी सबसे अमूल्य धरोहर मान ,दुर्योधन का साथ उसके हर कार्य में देने की ली थी | युद्ध - कला में पांडवों से कम होने पर भी दुर्योधन ने कर्ण के वीरत्व के अभिमान में इस युद्ध को अंजाम दिया |
एक कूटनीतिक प्रतिज्ञा इसमें कृष्ण ने भी ली थी | युद्ध में सहायता के लिए दुर्योधन के आने पर भी कृष्ण की योग निद्रा ,तब तक नहीं खुली ,जब तक अर्जुन उनकी शय्या के पायतानें नहीं आ गये | किंकर्तव्यविमूढ़ से एक तरफ खुद को और दूसरी तरफ अपने सैन्य बल को कर दिया और स्वयं शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की |
पांडवों के मामा मद्र नरेश शल्य ने भी भ्रमवश दुर्योधन का आतिथ्य स्वीकार कर लेने पर , कौरवों का साथ देने की प्रतिज्ञा की |
ऐसी अनेक कई छोटी - बड़ी प्रतिज्ञाएँ इस युग में की गईं थीं | इसीलिये एक तरह से देखा जाए तो महाभारत का युग महासमर के स्थान पर प्रतिज्ञाओं का युग कहा जा सकता है !
-निवेदिता