सोमवार, 27 जनवरी 2020

गीतिका : मैं गीत सृजन के गाऊँगी ...


गीतिका

शंकाओं के बादल छाए, पर मैं विश्वास जगाऊँगी। 
मैं गीत सृजन के गाऊंगी, धरती पर स्वर्ग रचाऊंगी।

माना जयचंद छिपे घर मे, बाहर अरिदल ने घेरा है
भुजबल प्रचंड सेना का है, मैं यह संदेश सुनाऊँगी।

जब राजनीति हिन्दू-मुस्लिम, के सम्बन्धों से खेलेगी
गंगा जमुनी तहजीबों का, जग में परचम फहराऊंगी।

जब हरे और केसरिया में, अपने समाज को बांटोगे,
है एक तिरंगा ध्वज अपना, फहराकर  मैं बतलाऊंगी।

माना बाधाएँ बहुत अभी, भारत को ऊंचे उठने में,
फिर भी निश्छल प्रयास की मैं, नदियां निर्बाध बहाऊँगी।

हम शिक्षा ,उन्नति स्वाभिमान, के शिखरों पर भी पहुँचेंगे,
लोगों के मन में स्वाभिमान, विश्वास अटल भर जाऊँगी। 

आगे ले जाना पुरखों की थाती ,दायित्व 'निवी' अपना,
सबको हितकारी भारतीय, संस्कृति की राह दिखाऊँगी
          ..... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

बुधवार, 22 जनवरी 2020

जो तुम चाहो ....

जो तुम चाहो

देनेवाला ऊपर बैठा
निहारता वारता
बहुत कुछ
देता ही रहता
तब भी रह ही जाता
बहुत कुछ कसकता
अनपाया सा

आज सोचती हूँ
माँग ही लूँ
उस परम सत्ता से
शायद कहीं
लिखनेवाले ने
लिखा हो
जो तुम चाहो ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

मंगलवार, 21 जनवरी 2020

पैग़ाम ...

पैग़ाम

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर लफ्जों का
सुन कर ही शायद ठंड अबोला कर जाए

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर अपनी यादों का
यादें आ आकर गुच्छा बन समेट लें वीराने में

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर एहसासों का
छुवन से ही चमक जाए चटकीली सी धूप

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर अपने साथ का
न रहने पर आगोश में भर सहला दें साथ सा

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर मीठे लम्हों  का
तुम तक पहुँचा दे #पैग़ाम मेरे जज्बातों का
            ...... निवेदिता श्रीवास्तव  'निवी'

बुधवार, 8 जनवरी 2020

ज़िन्दगी ....



ज़िन्दगी ने कल यूँ ही चलते चलते रोकी थी मेरी राह
आँखों में डाल आँखें पूछ  डाली थी मेरी चाह

ठिठके हुए कदमों से मैंने भी दुधारी शमशीर चलाई
क्या तुम्हें सुनाई नहीं देती किसी की बेबस मासूम कराह

ज़िंदगी कुछ ठिठक कर शर्मिंदा सी होकर मुस्कराई
सुनते सुनते सबकी बन गई हूं कठपुतली रहती हूं बेपरवाह

आज मैं भी कुछ अनसुलझे सवाल अपने ले कर हूँ आई
दामन जब खुद का खींचा जाता तभी क्यों निकलती आह

गुनगुनाती कलियों की चहक से भरी रहती थी  अंगनाई
कैसे बदले हालात किसने कर दिया मन को इतना स्याह

हसरतों ने बरबस ही दी एक दुआ और ये आवाज लगाई
बेपरवाह ज़िंदगी सुन इस निवी को तुझसे मुहब्बत है बेपनाह
          .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

बुधवार, 1 जनवरी 2020

बस इत्ती सी उम्मीद ~~~

 बस इत्ती सी उम्मीद ~~~

आने वाले लम्हों
जरा इतनी सी दुआ देना
आती - जाती साँसों में
अनगिनत लम्हे हो
मानते या मनवाते
या फिर बस
मन ही मन में रहें
थिरकतें - गुनगुनाते

पर  .....
न सिमटे रहें
किसी डायरी के
पन्नों में दुबके
चाहे हो बिंदु भर ही
पर कर लें बसेरा
कैलेण्डर के आनन पर
             ...... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'