आज मेरी पलकों के तले
ये जो मद्धिम सी नमी है
तुम्हारे सपनों की किरचें
खुली आँखों में खनकती हैं
शायद इन चमकते रंगों से
तुमने दोस्ती कर ली है
पर इन रंगों की ये चमक
मेरी आँखों में बसती है
जब भी मेरी आँखों में
यादों की नमी छलकती है
बावरा मन सोचता है
हाँ ! अब यहीं कहीं तो
इन्द्रधनुष खिलने को है ......... निवेदिता
हे सर्वशक्तिमान शक्ति !
आज मांगती हूँ
तुमसे तुम्हारा एक
बहुत ही नन्हा सा लम्हा
अपने ही लिये ......
हाँ ! सिर्फ और सिर्फ
अपने ही लिये चाहती हूँ
इस नन्हे से लम्हे से
और वो सब कभी न मांगूगी
जो रहा मेरे लिये अनपाया ...
आज तो बस शीश झुकाउंगी
नमन करूंगी .....
आभार मानती हूँ
उन सारे मीठे लम्हों का
जो रहा सिर्फ और सिर्फ मेरा ..... निवेदिता