लघुकथा : धैर्य की दिशा
स्टेज पर अवि पुरस्कार लेता हुआ और दर्शक दीर्घा में अंकू के साथ मैं । तालियों की गड़गड़ाहट में खुशियों में झूमता मन कितने वर्ष पीछे चला गया ....
माँ देखो न ये अवि बात ही नहीं मान रहा ... सारी दीवाल पर पेंसिल से लाइन खींच रहा था मैंने पेंसिल ले ली तो अब देखो न चम्मच उठा लाया .... अंकु परेशान सी मेरे सामने खड़ी हो गयी ।
मैंने कहा कि वो भाई को ले आये । उनके आने पर मैंने अवि को समझाया कि दीवाल पर नहीं लिखते और उसके हाथों में ड्रॉइंग की कॉपी और पेंसिल थमा दी थी कि उस पर जो भी मन हो बनाये ।
आज की इन तालियों की गड़गड़ाहट में मेरे उस दिन का धैर्य और अवि को सही दिशा मिलने का उपक्रम झलक रहा है । .... निवेदिता