गीत
उम्र झूठ की तुमने बताई न होती ।
वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।
सूरज भी झुलसा होगा तन्हाई में
अंधेरा सोया रहा मन की गहराई में ।
चाँद ने चाँदनी बरसाई न होती
वफ़ा की भी यूँ कभी रुसवाई न होती ।।
नयन बोलते रह गए मन की अंगनाई में
तारे भी हँस पड़े अम्बर की अमराई में ।
शब्दों ने यूँ वल्गा लहराई न होती
वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।
तन ऐसे चल रहा लम्हों की भरपाई में
मन क्यों डूब रहा उम्र की गहराई में ।
रस्मों में उलझन समायी न होती
वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।
... निवेदिता
उम्र झूठ की तुमने बताई न होती ।
वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।
सूरज भी झुलसा होगा तन्हाई में
अंधेरा सोया रहा मन की गहराई में ।
चाँद ने चाँदनी बरसाई न होती
वफ़ा की भी यूँ कभी रुसवाई न होती ।।
नयन बोलते रह गए मन की अंगनाई में
तारे भी हँस पड़े अम्बर की अमराई में ।
शब्दों ने यूँ वल्गा लहराई न होती
वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।
तन ऐसे चल रहा लम्हों की भरपाई में
मन क्यों डूब रहा उम्र की गहराई में ।
रस्मों में उलझन समायी न होती
वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।
... निवेदिता