तिरंगे का पाँचवां रंग
आँखों से बहते हुए आँसुओं ने जैसे उसके दिल में बसेरा कर लिया हो । अभी विज्ञापन देखा था जिसमें बच्चे ने शहीद हुए फौजी के रक्त को झंडे के पाँचवे रंग के रूप में गिनाया था ।
सच जब तक फौजी साँसें भरता है पराक्रम करता है तिरंगे की आन को बनाये रखता है ... पर जब उसकी साँसें थमती हैं तो जैसे उस झंडे में ही समाहित हो एक अनोखा सा रंग बन उभरता है । इस रंग के उभरने से राष्ट्र की चमक तो नहीं फीकी पड़ती पर उस फौजी के परिवार का क्या कहें ... कुछ समय बाद सब उसको भूल जाते हैं । कभी कुछ अनुकम्पा राशि या किसी दुकान की एजेंसी दे देते हैं ।उसके बाद .... उसके बाद कुछ खास नहीं बस 15 अगस्त या 26 जनवरी पर यादकर लेते हैं और कुछ फूल या माला अर्पित कर कर्तव्यमुक्त हो जाते हैं ।
पर क्या इतना ही पर्याप्त है एक फौजी के लिए कि वो निश्चिन्तमना हो अपने परिवार अथवा आश्रितों को भूल ,अपनी साँसें अपना जीवन वार दे राष्ट्र के नाम ....
क्या ये हमसब का कर्तव्य नहीं है कि उन के नाम सिर्फ सड़क ,पार्क अथवा मूर्ति ही न लगा कर कुछ सार्थक भी करें । जिन राजनेताओं की कोई कोई विशेष योग्यता - शौक्षणिक अथवा शारीरिक / सामाजिक - नहीं होती उनके लिये भी अच्छाखासा वेतनमान और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं ।हम आम जन भी वेतन भत्ते के साथ ही कुछ न कुछ सुविधाओं का उपभोग करते हैं । जिन वीर फौजियों के लिये के बल पर हम स्वतंत्र साँसें भरते हैं ,उनके लिए कोई विशिष्ट प्रावधान क्यों नहीं करते ।
मुझे लगता है कि हमको उन जांबाजों का मनोबल बनने के लिये उनके परिवार के लिये नींव सदृश होना चाहिए ।उनके लिये आर्थिक ,सामाजिक हर स्तर पर अतिविशिष्ट दर्जा देना चाहिए ।
तब ही हम तिरंगे के पाँचवें रंग का सम्मान करते हुए उसको गर्व से फहराने योग्य हो पाएंगे । अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं तो आइये एक रस्म की तरह बोल लेते हैं ..... जय हिंद !!!
.... निवेदिता
.... निवेदिता