सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत, जिला मेदिनीपुर में पंडित रामसहाय तिवारी जी के घर २१ फ़रवरी, सन् १८९९ में बसन्त पंचमी तिथि पर हुआ था। १९३० से इसी तिथि पर आपका जन्मदिन मनाया जाने लगा।
निराला जी की शिक्षा यहीं बंगाली माध्यम से शुरू हुई थी। कालान्तर में वे हिन्दी, बंगला, अंग्रेज़ी और संस्कृत भाषा में निपुण हो गए थे। आप की रुचि घूमने, खेलने, तैरने और कुश्ती लड़ने इत्यादि में भी थी। संगीत में आप की विशेष रुचि थी।
अपने समकालीन अन्य कवियों से अलग आपने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। निराला जी हिन्दी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। कविता के अतिरिक्त कथासाहित्य तथा गद्य की अन्य विधाओं में भी निराला जी ने प्रचुर मात्रा में लिखा है ।अनामिका, गीत कुंज, सांध्य काकली, अपरा इत्यादि आपकी मुख्य प्रकाशित #काव्य_कृतियाँ हैं। अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा इत्यादि आपकी मुख्य प्रकाशित #उपन्यास हैं। लिली, सखी, सुकुल की बीवी इत्यादि आपकी मुख्य प्रकाशित #कहानी_संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त निराला जी ने निबन्ध आलोचना, पुराण कथा, बालोपयोगी साहित्य भी लिखे हैं।
'निराला रचनावली' नाम से ८ खण्डों में आपकी पूर्व प्रकाशित एवं अप्रकाशित सम्पूर्ण रचनाओं का सुनियोजित प्रकाशन भी हुआ है।
ऐसी विशिष्ट लेखनी के धनी, यशस्वी रचनाकार एवं हिन्दी कविता के छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ आ. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी शत-शत नमन 🙏