शुक्रवार, 25 जून 2021

दोस्त

 बचपन में घर में काका को अक्सर गुनगुनाते सुना था ,"बड़ भाग मानुस तन पायो ,माया में गंवायो " ... कई बार पूछने पर और उनके समझाने पर भी मेरे बालमन को यह मायामोह का गोरखधंधा कुछ समझ नहीं आया था । उसके बाद ज़िन्दगी के मायाजाल ने क्रमशः मुझे भी अपनी माया में उलझा लिया और कब बचपन के खेल खिलौने कॉपी - किताब में ,और फिर ज़िन्दगी के झिलमिलाते हुए अन्य सोपान जैसे इस विचार से ही दूर करते गए । आज इतने लम्बे सफ़र के बाद यही भजन गुनगुनाने लगी हूँ ।


जीवन के अब तक के सफ़र में दोस्त भी मिले ,उम्मीद भरते हुए ख़्वाब भी देखे ... सेहत के प्रति ध्यान भी तभी गया जब उसने कहीं स्पीडब्रेकर तो कभी माइलस्टोन दिखा कर चेताया । एक तरह से सिर्फ एक पहले से पूर्वनिर्धारित ढांचे में ही रंग भरते गए बिना यह सोचे कि हम चाहते क्या हैं या हममें क्या करने की काबिलियत है ! ईश्वर ने अपनी प्रत्येक कृति को कुछ विशेष करने के लिये ही बनाया होता है ,जिसके बारे में कुछ सोचने या जानने का प्रयास किए बिना ही , पहले से तैयार रास्ते पर चलने की जल्दी में जीवन ख़तम कर इस दुनिया से चल देते हैं ।

बहरहाल यह सोचने के स्थान पर कि हम क्या कर सकते थे और क्या नहीं किया ... और यह भी नहीं सोचूंगी कि जीवन कितना बचा है या उसकी उपयोगिता क्या है ... अब बस सिर्फ वही करना चाहूँगी जिसमें मेरे मन को सुकून मिल रहा हो 😊

अब मैं #ऐसे_दोस्त चाहूँगी जो खीर में नमक पड़ जाने पर भी उसके स्वाद में अपनी सकारात्मकता से नया स्वाद भर सकें और यह देख कर कि मैं किसी प्रकार चल पा रही हूँ ,दौड़ नहीं सकती की लाचारी के स्थान पर ,यह कहने का जज़्बा रखते हों कि अपने दम पर चल रही हो ,किसी पर निर्भर नहीं हो । मेरे लिये पहले भी और अब भी दोस्त का मतलब ही होता है एक ऐसी शख़्सियत जिसके पास मेरे लिये #वक़्त हो ,उसके दिल - दिमाग़ में #मुहब्बत हो ... ज़िन्दगी कितने भी उबड़ खाबड़ रास्तों पर चल रही हो ,वह एक #उम्मीद की रौशन किरण हो ... दावत पर आमंत्रित कर के दूसरी सुबह सैर पर ले जाना न भूले कि #सेहत न बिगड़े ।

मैं ऐसे दोस्त को खोजने के लिये परिवार के बाहर जाऊँ यह जरूरी भी नहीं 😅 यह फोन पर भी आवाज़ भाँप लेने वाले अपने बच्चों में भी मिलता है ,तो कभी सुबह की चाय बनाने का अनकहा सा आलस चेहरे पर भाँप लेने वाले हमसफ़र में मिल जाता है । #निवी

रविवार, 6 जून 2021

लघुकथा : मैं चाहता हूँ !

 लघुकथा : मैं चाहता हूँ !

सुबह से ही घर का माहौल तल्ख़ था । वह उठा और अपनी चाय का कप रसोई में रख आया । बाकी के कप मेज पर ही पड़े थे ,बच्चे ने उन पर निग़ाह पड़ते ही वो सब उठाये और रसोई में रख आया । सब अपने - अपने काम का बहाना करते अपने कमरों में सिमट गए और ए. सी. ऑन कर लिया । ज़ाहिर सी बात है ए. सी. ऑन होने पर कमरों के दरवाज़े भी बन्द होने ही थे ।

थोड़ी देर में घण्टी की आवाज़ पर बाहर देखने के साथ ही वो बोल उठा ,"काम करने के लिए बुलाया है, बात कर के रख लो ।"

वह चौंक उठी ,"अचानक क्या जरूरत पड़ गयी जो इस को बुलाना पड़ा ? "

वह पौरुषीय दम्भ में झुंझला पड़ा ,"सब अपने कमरों में काम करेंगे तो नाश्ता - खाना पहुँचाने के लिए इसकी जरूरत पड़ेगी । मैं नहीं चाहता कि अधिक काम से थको और बीमार पड़ो ।"

वह शान्त भाव से पलट कर अंदर जाने लगी ,"उसको रखना है तो खुद बात कर के काम समझा दो । वैसे घर का काम नहीं बढ़ा है ,बस दो काम का रूप बदल जाये तो कोई समस्या ही नहीं ... पहली कि जब कोई चाय का कप हटा रहा हो तो सिर्फ़ अपना कप न हटाये ... और दूसरी यह कि मैं चाहता हूँ को हम चाहते हैं में बदल दिया जाये । " #निवी