व्यक्तिगत ,प्रशानिक और सामाजिक स्तर पर कई दावे और वादे किये जाते हैं ,व्यस्था में आमूल परिवर्तन लाने के लिए ,पर अक्सर वो असफल हो जाते हैं | इसका कारण जानने का जब-जब प्रयास किया इसके मूल में मुझे सिर्फ एक ही तत्व प्रभावी दिखा और वो है "नीयत" का | सत्ता और संस्थाओं के उच्चासन पर आसीन प्रमुख ,नीति-निर्धारण करते समय उस नीति के मूल तत्व की एक तरह से अनदेखी करके अन्य तत्वों को महत्व देते हैं | ये तथाकथित अन्य तत्व सामान्यत : उनके स्वार्थों की पूर्ति में सहायक होते हैं | ऐसी नीतियाँ समष्टि की अवहेलना करके व्यक्ति की मुखापेक्षी होती हैं | यही उस नीति-नियंता की नीयत दर्शाती है |
हम सब बचपन से ही सुनते आयें हैं कि नीतियों की नियति नीति निर्धारकों की नीयत पर ही अवलम्बित रहती हैं | अगर नीयत ही स्वार्थ पूर्ति की हो तो कितनी भी अच्छी योजना बना दी जाए ,उसको तो भूलुंठित होना ही है | जब भी कोई दल सत्ता सम्हालता है तब बहुत अच्छी नीतियों की घोषणा होती हैं ,बस यही लगता है कि "रामराज्य" बस द्वार खटखटाने ही वाला है | परन्तु पलक झपकने की भी मोहलत नहीं मिलती कि नीयत दिख जाती है और उस अच्छी और लोकलुभावन नीति का क्रियाकर्म हो जाता है |
इस नीयत के फलस्वरूप ही हम प्रतिदिन नित नये घोटाले के बारे में सुनते हैं | ये घोटाले स्वास्थ्य सेवाओं में हो अथवा शिक्षा के क्षेत्र में , हर क्षेत्र में एक से ही परिलक्षित होते हैं | हम लोग एक सामान्य घटना मान कर सब कुछ भूल जाते हैं और समाचार-पत्र में अगले समाचार की तरफ बढ़ जाते हैं |
वैसे ऐसा नहीं है कि ये बड़ी नीतियों में ही होता है | हम - आप सामान्यजन जो साधारण नैतिक जीवन में करते हैं वहां भी यही परिलक्षित होता है | हम अपने घर के पास वाले पार्क के सौन्दर्यीकरण के लिए पहल करते हैं और जैसे ही काम थोड़ी गति पकड़ता है ,हमारी नीयत बदलने लगती है | हम चाहने लगते हैं कि सबसे सुंदर पौधे ,हमारे घर की तरफ लगें ,बेशक उससे पार्क का प्रारूप ही अपरूप लगने लगे | अब हमारी इस नीयत से पार्क के सौन्दर्यीकरण की नियति तो प्रभावित होनी ही है !अब किसी भी नीति के बारे में पता चले तो उस के नियंता की नीयत की जांच जरूर करनी चाहिए जो उस नीति की नियति निर्धारित करेगा !
- निवेदिता