गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

इस सदी का सोलहवां साल ......



एक रस्मी रवायत की तरह ,आज और कल हम जाते हुए वर्ष की विदाई और आने वाले वर्ष का स्वागत करते हुए ,परस्पर बधाइयों का आदान - प्रदान करेंगे  .... पर क्या इस वर्ष भी हमको सिर्फ इतना ही करना चाहिए ,या कुछ और भी सोचना - समझना चाहिए  .... 
कल से इस सदी के सोलहवें वर्ष की शुरुआत होगी  .... सोलहवां साल - ये किसी के भी जीवन में एक विशेष स्थान रखता है  .... इससे जुडी यादें और जिम्मेदारियां हमारे जीवन में एक अलग सा ही स्थान संजोये रहती हैं  ... नामालूम सी बातों में भी एक जिम्मेदारी की अनुभूति होती है  ... शायद ये अपनेआप को और अपनी महत्ता जताने का तरीका रहता है  ... 
जब हमारे जीवन में सोलहवें साल का इतना महत्व है तो समय के ,इस सदी के लिए भी सोलहवां साल कुछ विशेष ही होना चाहिए  .... कुछ न कुछ सार्थक करने का प्रयास करें हम सब अपने - अपने स्तर पर  .... इस के लिए हमको अलग से कुछ नही करना है ,सिर्फ अपनी सोच को एक नया विस्तार देना है  .... लगभग हर कार्य पर  खुद अपने प्रति ही जवाबदेही निश्चित करनी होगी कि हमारे किसी भी कार्य का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा  .... 
व्यक्तिगत स्तर पर हम अपना आकलन करें कि हमको जैसा समाज मिला था ,हमने उसको समृद्ध करने में  योगदानस्वरूप क्या किया  ..... और कुछ न भी कर पाएं तब भी कम से कम इतना तो कर ही लें कि अपने बच्चों और उनकी सोच को इतना परिष्कृत कर दें कि वो अपनी सकारात्मक उपलब्द्धियों में हमसे कुछ कदम तो आगे बढ़ कर रखें  ......
बच्चों के लिए हम अपने घर को सबसे सुरक्षित स्थान बनाने का प्रयास करते हैं ,ऐसे ही समाज को इतना सुदृढ़ कर दें कि वो कहीं भी रहें और सुरक्षित रहें  ..... मोमबत्तियां जलाने या विरोध प्रदर्शन की नौबत ही न आने पाये  ....... 
बेटी और बेटे से आगे बढ़ कर हम "बच्चों"  के लिए सोचें  ..... 
आज बस यही कामना करती हूँ कि परमशक्ति हमारे विचारों और कार्यक्षमता में सोलहवें वर्ष का उत्साह , साहस और जिजिवषा भर दें जिससे जब हम अगले वर्ष नए वर्ष की प्रतीक्षा करें ,तब सुखद स्मृतियों के साथ उर्ज्वित रहें  ..... निवेदिता 

रविवार, 27 दिसंबर 2015

27 / 12 / 15



                                             मुंदी पलकों तले
                                                   कुछ सपने पले थे
                                                           मुस्कराये - सकुचाये
                                                                ठिठके - अलसाये से

                                             पलके खोले बैठी
                                                   राह तकती लखती हूँ
                                                           उन्हीं अलबेले  सपनों के
                                                                      बस  सच हो जाने की
                                                                              ....... निवेदिता 


बुधवार, 9 दिसंबर 2015

तन्हा .........





शब्दों की भीड़ में
एक अक्षर तन्हा  …
रिश्तों की भीड़ में
एक मन तन्हा  ....
सुरों की सरगम में
एक सुर तन्हा  .....
खिलखिलाते ठहाकों में
एक मुस्कान तन्हा  ....
सतरंगी सा सजा इन्द्रधनुष
ये एक रंग तन्हा  .......
यादों - वादों से भरी ये किताब
अंतिम कोरा पन्ना तन्हा  .......
बैठ पर्वत के शिखर पर
जीती हूँ एक साँस तन्हा  ......... निवेदिता

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

कोई ख्वाब .....



रूह में पैबस्त
जब कहीं  ....
कोई ख्वाब होता है
हज़ार ख्वाहिशों सी
सरगोशियों में
फलक तक
धड़कती सी
आरजुओं  का
इक बायस होता है ! .... - निवेदिता

गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

पुलकित प्रमुदित मन साथी मधुमास बना ....



छल -छल करती 
सरिता कह लो 
या निर्झर बहते जाते 
नीर नयन से
तरल मन अवसाद सा 
बहा अंतर्मन से
कूल दुकूल बन 
किसी कोर अटक रहे
पलकें रूखी रेत संजोये 
तीखे कंटक सी चुभी
ओस का दामन गह 
संध्या गुनगुनायी थी
नमित थकित पत्र 
तरु का भाल बना
धूमिल अवसाद न समझ
इस पल को
आने वाली चन्द्रकिरण का
हिंडोला बन
शुक्र तारे की खनक झनक सा
उजास भरा
पुलकित प्रमुदित मन साथी
मधुमास बना .........  निवेदिता