धूमिल होते बिन्दुओं ने
अक्षर का आकार लिया
अक्षर ने अक्षर से
ऐसे हाथ मिलाया
शब्दों का बोलता
इक संसार बनाया
जीवंत जज़्बातों ने
स्वर की झंकार दी
कैसे मौसम बदला
पतझड़ जैसा आया
शब्दों ने स्वर को
बीच मंझदार छोड़ा
कभी बोलते थे शब्द
बातों की ,यादों की
अनवरत लहराती
नदिया बहती रहती
खामोशी की पतवार ने
स्वर - शब्दों की नाव
डगमगा डूब जाने दिया
कैसा मौसम आया ........
-निवेदिता