लम्हा - लम्हा बुनती गयी इक स्वेटर
दो फन्दे मीठी - मीठी यादों से सीधे हैं
तीन फन्दे दुख में करते चटर - पटर !
दुखते लम्हों को भी था दुलराया
दुखड़ा अपना उन्होंने था सुनाया
एकाकी से लम्हों को बाँहों में भर
इंद्रधनुषी रंग से था चँदोवा सजाया !
अवसान की बेला ले खड़ी है झोली
करती सखियों सी अल्हण ठिठोली
धवल धूमिल पड़े उन रंगों को साधा
बनाने चल पड़ी मैं उस पार रंगोली ! #निवी'