रविवार, 13 फ़रवरी 2022

स्वेटर ज़िंदगी का ...


ज़िन्दगी से यूँ ही दो - दो हाथ कर
लम्हा - लम्हा बुनती गयी इक स्वेटर
दो फन्दे मीठी - मीठी यादों से सीधे हैं
तीन फन्दे दुख में करते चटर - पटर !

दुखते लम्हों को भी था दुलराया
दुखड़ा अपना उन्होंने था सुनाया
एकाकी से लम्हों को बाँहों में भर
इंद्रधनुषी रंग से था चँदोवा सजाया !

अवसान की बेला ले खड़ी है झोली
करती सखियों सी अल्हण ठिठोली
धवल धूमिल पड़े उन रंगों को साधा
बनाने चल पड़ी मैं उस पार रंगोली ! #निवी'

रविवार, 6 फ़रवरी 2022

कैक्टस की बारात !

 

तुम्हारे दर से आ गईं हूँ
ले चुभते काँटे की सौगात !

टीसते छालों का मुँह खोल रही हूँ
काँटों से उकेर रही हूँ जज़्बात !

रोक लो अपनी इस अदा को
ये नन्हे नन्हे काँटे कर रहे हैं बात !

आओ थाम ले एक दूजे का हाथ
बन न जायें कैक्टस की बारात !  #निवी

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

यादों की रम्बल स्ट्रिप

 आज बसन्त पंचमी है ... लग रहा था कि शायद इस बार नहीं हो परन्तु बावरा मन हर साल की तरह इस बार भी यादों की टीस की चुभन अनुभव कर रहा है । सरस्वती पूजा की ,रम्बल स्ट्रिप जैसी एक रील सी चल रही है ।


स्कूल के दिनों में बसन्त पंचमी विशिष्ट होने का आभास देती थी क्योंकि कार्यक्रम में सरस्वती के रूप में ,वीणा के साथ मुझे ही बैठाया जाता था और मैं ही सबको प्रसाद देती थी । बाद के वर्षों में भी पूजन का सिलसिला चलता रहा । 


कालान्तर में जब बच्चों को सरस्वती पूजा के लिए भेजती थी ,तब उनको समझाना पड़ता था कि इस पूजा में ऐसी क्या विशिष्टता है जो उनको स्कूल जा कर पूजा करनी है । 


समय अपनी चाल चलता ,रंगत बदल जाता है और हम हतप्रभ से बस देखते रह जाते हैं । ऐसा ही एक वर्ष आया था जो बसन्त पंचमी के दिन ही हमारे पापा को चिरनिद्रा में सुला गया था और हम सब इंसान होने की विवशता लिए उनको ... नहीं ... उनके शरीर को जाते देखते रह गए । तब से इस दिन पर किसी भी प्रकार की पूजा करने का दिल ही नहीं करता है । 


कभी - कभी मन को मजबूत करना चाहती हूँ कि सम्भवतः पापा ने अपने महाप्रयाण के लिए बसन्त पंचमी को इसलिए ही चुना कि माँ शारदे अपने स्नेहिल अंचल की छाया में मुझ को ताउम्र रखे रहें ! #निवी

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

यादों का प्याला ...

 यादों का प्याला ...

अवनी ओढ़े धानी चूनर
मुरली मधुर बजाए अम्बर !

सतरंगी किरणों का ले सेहरा
सज्ज हुआ तब रवि का चेहरा !

नन्ही नन्ही बुंदियन की माला
नयनन की छलकी तब हाला !

धीर धरें कैसे साजन सजनी
प्रणय की पायल है बजनी !

कलियाँ कोमल खिलने आईं
मधुर मिलन की ऋतु गहराई !

यादों से भर रहा है प्याला
नैन बने प्रिय की मधुशाला !   निवी