जब भी कोई राष्ट्रीय पर्व आता है अथवा विभिन्न धर्मों से सम्बन्धित कोई पर्व और हाँ ! आतंकी वारदात होने पर भी समाचार में अकसर पढ़ती थी "कुत्ता - पुलिस" की तैनाती का । ये समाचार अजीब सी उलझन छोड़ जाता था कि ये "कुत्ता - पुलिस" है क्या ? ट्रेन में भी अकसर देखा आगे - आगे कुत्ता चलता है जैकेट पहने हुए ,एकदम शहंशाही रुतबे के साथ जो चाहे सूँघता हुआ और उसके पीछे - पीछे कुछ खाकी वर्दी पहने मनुष्य नामधारी प्राणी । दोनों में से किसका रूतबा अधिक है ये समझ ही नहीं आता था ।
इस उलझन को सुलझाने के लिए बहुत मनन किया तो कुछ उलझनें बिन्दुवार प्रकट हुई ,चलिए आपको भी बता देते हैं :-
१ - पुलिस कुत्ता है
अथवा
२ - कुत्ता पुलिस है
अथवा
३ - ये कुत्ता और पुलिस दोनों से सम्बन्धित है
अब देखिये पहले बिंदु को मानने में हम जैसे शरीफ ,बोले तो डरपोक नागरिक का तो राम नाम सत्य ही हो जाएगा । अब आप ही बताइए पुलिस तो कोई मनुष्य ही बन सकता है । पशु और वो भी कुत्ता ,राम भजिये किसी इंसान में अभी इतनी इंसानियत नहीं आ पायी है कि वो स्वयं में कुत्ते के गुण विकसित कर सके !
अब आते हैं दूसरे बिंदु पर कुत्ता पुलिस है ,स्वीकार कर पाने जैसी छोटी सी बात मान जाने जितनी समझ भी अपने में तो नहीं है । क्या करें मजबूरी भी तो कोई चीज होती है । एक बहुत मामूली सी बात है - आज तक ऐसा कोई कुत्ता नहीं दिखा जो अपने ही मालिक ,जो कि उसका पालन - पोषण करता है ,को काटता हो अथवा नुकसान पहुंचा सका है । जबकि पुलिस उस आम जनता का ही सबसे अधिक शोषण करती है ,जो विभिन्न कर के रूप में उसका वेतन तथा अन्य भत्ते देता है । अगर कभी कोई कुत्ता पागल हो जाता है अथवा अपने स्वामी को किसी भी प्रकार की क्षति पहुँचाने का प्रयास करता है ,तो उसको दंड देने में एक पल का भी विलम्ब नहीं होता । पर क्या कभी किसी पुलिसकर्मी के विरुद्ध हम ऐसा सोच भी सकते हैं ? इसलिए दूसरा बिंदु भी वृहद विरोध के चलते बहुमत से अस्वीकार किया जाता है !
अब हमारे पास बचता है तीसरा बिंदु कि ये कुत्ता और पुलिस दोनों ही से पृथक रूप से सम्बन्धित है ! दोनों ही पृथक प्रकृति के स्वतंत्र जीव हैं । कुत्ता तो जैसा उसका प्रशिक्षण होता है ,उसके अनुसार ही काम करता है । दूसरे शब्दों में कहें तो उसके मस्तिष्क रूपी कम्प्यूटर में जो प्रोग्राम संजो देते हैं , बस उसका अनुसरण करता है । जबकि मनुष्य या कह लें पुलिस के पास अपनी स्वतंत्र सोच और कार्यशैली होती है । पुलिस को हम कुत्ते जैसा भी नहीं देख सकते हैं । जानते हैं क्यों ,अगर वो वैसी हो गयी तो वो सिर्फ उसका ही काम करेगी जो उसको अतिरिक्त रूप से लाभान्वित करेगा ,अर्थात रिश्वत और रिश्वतखोरों की जयजयकार होगी और न्याय लुप्तप्राय श्रेणी के जीवों में सम्मिलित हो जायेगी ! पर हाँ उनकी प्रतिबद्धता देश और समाज के प्रति होनी चाहिए ।
अब इतने मनन के बाद अपनेराम तो समझ गये कि ये पुलिस नामधारी इंसानऔर कुत्ता नामधारी पशु की तैनाती से सम्बन्धित है । अब थोड़ा सा स्वयं की सुरक्षा भी आवश्यक है न ! तो इस पूरी उधेड़बुन की मंशा किसी को अपमानित करना नहीं है अपितु दोनों का गुणों का स्पष्ट विभाजन करके वस्तुस्थिति को समझने का एक विनम्र प्रयास है । कोई किसीसे ईर्ष्या न करे बस अपने संतुलित गुणों से समृद्ध रहे !!!!!