शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

आने वाला पल .....जाने वाला पल.....

 एक बार फ़िर ,हो गयी तैयारी ,
 आने वाले पल के स्वागत की ,
 बीते हुये लम्हों को भुलाने की ,
 आने वाले को स्वीकारने की ,
 शुभकामनायें देने की ,पाने की ,
 सच ये पल ..,आने वाले पल ..,
 हर पल ..हों मुबारक सब को !
 हर राह ,हर घर ,हर मन ,
 सुखी हो ,फ़ले फ़ूले ....
 किसि की राह न कटे
 किसी की राह से ,आह से..
 कभी मिलो तो न झुके निगाह ..
 क्यों कि  आने वाला पल ही है ..
 आ के जाने वाला पल ......
 

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

बिन्दी

बिन्दी .....
सुख का ,
सौभाग्य का ,
सुहाग का ,
चिन्ह दुलार का ,
देखा सबसे पहले कहां !
याद आता है वो...
प्यार भरा
दुलार बरसाता
हौसला बढाता
चेहरा मां का  !
जन्म के साथ ही
नजर टीका लगाने को
पास आया प्यार से
उमगता चेहरा ..
वो नन्हे हाथों का .
बढ कर थामने को
चमकते सूरज सी
मां की बिन्दी...
थोडा बडा होते ही
उस बिन्दी को
खुद पर सजाने को
ललकता बाल मन
उस चाहत पर मां की
आश्वस्त करती थपकी
आज मां के नहीं होने पर भी
उन के आशीष सी
दमकती मेरे माथे पर बिन्दी !
उस माथे से इस माथे पर
दमकती बिन्दी
जैसे सफ़र हो  ,
आशीष हो ,
एक पीढी से
दूसरी पीढी को ..
बेशक बिन्दी
का आकार बदला
बडी से छोटी होती गयी
सुख की
सौभाग्य की
भावना वही रही !
इसीलिये आज याद
आता है मां का बिन्दी से
चमकता चेहरा
जहां सबसे पहले देखी
खिलखिलाती बिन्दी.......!

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

मौत...

मौत .....
तू ही एक ,
इकलौता सच है ,
शाश्वत सच ..।
हां ये भी सच है ,
कि तुझ से
मिलना कोई नहीं चाहता ,
मिलना तो दूर
सोचना भी नहीं चाहता
फ़िर भी
बिना किसी की
चाहत के ,
 बिना किसी  के
स्वागत के
तू आ ही जाती है
कभी भी ,
कहीं भी ,
किसी को भी ,
कैसे भी ,
जिसको बचाने को
दुआ सब करें
उसे भी ,
लेकिन ...
सच में
एक बहुत बडा
अन्याय है तेरा
जिसके मरने की दुआ
सब हैं करते ,
उसको ही अनदेखा
कैसे कर जाती ?
तू मौत है
अंत है
अनंत है
फ़िर भी तुझ में
आयी कहां से
ये इनसानी फ़ितरत
अनचाहे को चाहने की ,
जिसकी जरूरत हो ,
उसको ही चाह के ,
साथ ले जाने की ...
लेकिन तेरे लिये तो
सब है माफ़ ,
क्यों कि तू..
तू तो है
सिर्फ़ और सिर्फ़
मौत.....
     -निवेदिता 

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

डिलीट बटन

डिलीट बटन कहीं होता ,
सबका जीवन
कितना स्वर्णिम होता ,
कितनी बातें कितनी यादें
डिलीट  हम करते ,
कुछ को हम ,
तो कुछ हमें
डिलीट करते .
कहीं से खुद को डिलीट कर
हम खुश हो लेते ,
कहीं से खुद को डिलीट कर
हम खुशी दे लेते ,
कहीं दूर से देख
खुश हो लेते
अपने बिना
अपनों का खुश जीवन ,
जिनके तब हम
अपने नहीं होते ,
हम हों ना हों
पर वो तो
मेरे अपने ही होते ,
पर शायद
तब उनका जीवन
कहीं अधिक
सहज , सुखी , संजीवन
या कहूं सफ़ल होता
पर ये डिलीट बटन ........कहीं मिल पाता ......

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

काश......

काश मन हमारा स्लेट होता ,
हमारे पास एक उजला लम्हा होता ,
उनका  नकारना हम स्वीकार पाते ,
उलझनों पर सफ़ेदी फ़ेर पाते ,
उनकी अनदेखी को न देख  पाते ,
उस न को अपना बना पाते ,
काश कुछ वो समझ पाते ,
काश कुछ हम समझा पाते ......

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

वो दो हाथों में.....

 वो दो हाथों में हंसती आती ज़िन्दगी ,
 वो दो हाथों में बिखरती जाती ज़िन्दगी ,
वो किलकते हाथ खोजते नये अर्थों में ज़िन्दगी ,
वो सहमते हाथों की कोशिश बचाने को ज़िन्दगी  ,
वो एक रिश्ते का जुडना और निखरती कई ज़िन्दगी ,
वो एक सांस का थमना और बिखरती कई ज़िन्दगी  ,
देते कई शुभकामनायें और शुरू होती ज़िन्दगी ,
देते संवेदनायें और बिखरती जाती ज़िन्दगी..........