गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

शीर्षक : मंज़िल मिल जाएगी


शीर्षक : मंज़िल मिल जाएगी

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कैसे कह दूँ कि मैं परेशान नहीं हूँ ,
बिखरी सी राहों में पशेमान नहीं हूँ ।

उखड़ी सी साँसों से साँस भरती हैं ,
हाथों को नज़रों से थाम कहती हैं ।

जानेजां कर तू परस्तिश हौसलों की ,
इन्हीं राहों में हम फिर मिल चलेंगे ।

ज़िंदगी जिंदादिल वापस मुस्करायेगी ,
अपने होने का यूँ एहसास कराएगी ।

लरज़ते कदमों से ही तू चल तो सही ,
कह रही 'निवी' मंज़िल मिल जाएगी ।।
      .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

ख़्वाहिश और ख़्वाब

ख़्वाहिश और ख़्वाब

ये "ख्वाहिश" रही कि वो "ख़्वाब" ही न रह जाते
हर्फ़ दर हर्फ़ हक़ीकत बन यादे सहरा में बस जाते

मेरे ख़्वाब कभी यूँ  ख़्वाहिश तुम्हारी बन जाते
तुम ख़्वाहिश बन ख़्वाब में मेरे बसेरा बन जाते

ये खलल ये ख़लिश, यही तो इक याद है मेरी
परेशां न  होते तुम तो ये ख्वाब  कहाँ उमगते
                     .... निवेदिताश्रीवास्तव 'निवी'

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

लघुकथा : सैनिटाइज़

लघुकथा : सैनिटाइज़

वसुधा बहुत बेचैन थी । उसके शरीर पर जगह - जगह छाले उभर गये थे ,जिनसे उठने वाली टीस ,वसुधा के हलक से कराह बन कर सिसक उठती थी । जब वह अपने केशों को देखती ,तब वह बिलख उठती थी । उसके घने केशों को कैसे काट दिया गया था और सजावटी ब्रोच लगा दिए गए थे ,पर वो ब्रोच उसको चोट पहुँचाते खरोंच से भर देते थे । निर्मल नयन भी अपनी निर्मलता खो कर धूमिल हो चले थे ।

जब उससे पीड़ा नहीं सही गयी ,तब वो बिलख कर कातर स्वर में गगन को पुकार उठी ,"ओ मित्र ! मेरी इस पीड़ा को शमित करो न ।"

गगन व्यथित मन से बोल उठा ,"वसुधा ! तुम्हारी सहायता करने कोई और नहीं आएगा । तुम स्वावलम्बी बन अपना उपचार स्वयं करो । कभी करवट ले कर तो कभी गर्मी बढाकर सेंक लें कर । कभी छालों को ठण्डा करने के लिये शीतलहर भी बहाना होगा । देखना सब बेचैन हो कर तुमको कोसेंगे भी ,परन्तु तुम बिलकुल भी विचलित मत होना । "

वसुधा भी विचारमग्न हो कह पड़ी ,"हाँ ! मुझे प्रकृति को भी तो खुद को सैनिटाइज करना चाहिए  ... फिर कुछ तो  बैक्टीरिया छटपटाहट में मेरी भी पीड़ा समझ कर सम्हल जाएंगे ।"
                                            ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

लघुकथा : उम्र

लघुकथा : उम्र

कब से बैठी शून्य में ही टकटकी लगाए बैठी थीं वो । हर पल खिलती खिलखिलाती बातों  की फुहार सी हर कहीं  बरसने वाली बदली धुंध बनती जा रही हो जैसे ।

नन्हा गोलू गेंद खोजता हुआ उधर आ गया और उनको देख बोल पड़ा ,"दादी चलो न रेस लगाते हैं ,वैसे भी मेरी गेंद मिल ही नहीं रही ।"

"नहीं बेटा ,अब मैं रेस नहीं लगा पाऊँगी । दर्द बहुत हो रहा है ।"

"कहाँ दर्द है दादी ? चलो डॉक्टर के पास चलते हैं ।"

"नहीं गोलू ,अब मैं ठीक नहीं हो पाऊँगी । मेरे डॉक्टर को भगवान ने अपने पास बुला लिया है न । अब मैं बूढ़ी हो गयी हूँ ",कहती हुई वह एक हाथ घुटनों पर और दूसरा पीठ पर रख कर उठने का प्रयास करने लगीं ।

"दादी अभी जब हम घर से आये तब तक आप मुझसे रेस लगाती आयी हैं ,अचानक क्या हो गया ?  अरे हाँ आप फ़ोन पर किससे बात कर रही थीं ।"

"बेटा वो मेरे छोटे भाई का फ़ोन था ,वो मेरी माँ ....   " छलक आयी पलकों की नमी को सुखाती बोल पड़ी ,"बेटा  अब तो मैं बड़ी हो गयी हूँ ।"
                               ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

लघुकथा : प्यार

लघुकथा : प्यार

सहमी सी अनुभा घर में घुसते ही विदिशा से लिपट गई ,"माँ ! प्यार करना कोई बुरी बात होती है क्या ? नेहा को उसके घरवालों ने बाहर निकलने से मना कर दिया है कि वो किसी से प्यार करती है ।"

विदिशा ने उसको अपने पास बैठा लिया ,"बेटे ! सबसे पहली बात तो तुम ये समझ लो कि कोई भी बात या मनोभाव गलत नहीं होता ,गलत होती है उसके पीछे की नीयत ।"

"माँ ! मैं समझी नहीं ... "

"देखो हम इंसानों की क्या बात ,जिनको हम पूजते हैं ,वो देव भी प्रेम करते हैं । प्रेम की पराकाष्ठा है सीता का राम से प्रेम जिन्होंने कितने कष्ट सहे पर राम का साथ सदैव दिया ,विशेषकर विपरीत परिस्थितियों में । सहभागिता और साख्यभाव वाला प्रेम राधा कृष्ण का है । अपमान न सहन कर पाने पर जब सती  हवन कुंड में जल गयीं तब भोलेनाथ उनके अपमान पर क्रोधित होकर ताण्डव कर सम्पूर्ण सृष्टि का ही विनाश करने लगे थे ।"

"पर माँ !इसमें तो कुछ गलत है ही नहीं ... फिर नेहा को ..."

"सही कह रही हो बिट्टू ... ये प्रेम का विशुद्ध रूप है । कहीं कोई दुराव छुपाव नहीं है ,यदि है तो सिर्फ एक दूसरे के प्रति सम्मान । नेहा या किसी का भी प्रेम करना गलत नहीं है ,गलत सिर्फ यही है कि उसने छुपाने की कोशिश की । "

"माँ ! इसमें बताने जैसा क्या है ... "

"तुमलोगों ने अभी सिर्फ परिवार का निस्वार्थ प्रेम ही देखा है । दुनिया में धोखेबाजों की भी कमी नहीं ,जिनको तुम लोग सम्भवतः समझ नहीं पाओगे । यदि बड़ों को बता दोगे तो वो तुमको गलत व्यक्ति के झूठे प्रेम से बचा लेंगे ।"

"मैं समझी नहीं माँ ... "

"प्रेम का मूल तत्व समर्पण ,साख्य और सुरक्षा देती भावना है ,जब ये समझ जाओगी तब इससे खूबसूरत कुछ है ही नहीं ... ये समझते ही किसी बन्धन की कभी जरूरत ही नहीं रह जायेगी ।"
                  .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'