नहीं पता ये काँच के रिश्ते हैं
या रिश्तों में दरकता है काँच
निर्मल काँच ही है चमकता
रेत का एक कण भी कहीं
बहुत गहरे छोड़ जाता है
चंद प्रश्न करते हुए निशान
आत्मा को खरोंचती अनबूझी
रपटीली पगडंडियों सी चिटकन
इन रिश्तों में दिखती अपनी ही
अजनबी सी परछाईं है ,
अपने ही अनसुलझे सवालों के
मनचाहे जवाब तलाशता
अपराधी सा अंतर्मन है .....
-निवेदिता