डाउन समस्या या समाधान
आम जन की लापरवाही ने पिछले दोनों कोरोना काल में वायरस की विभीषिका को भयावह बना दिया था । ये ऐसा दौर था जब एक तरह से इंसानियत के ऊपर से विश्वास हट गया था और अधिकतर आत्मकेंद्रित हो कर रह गए थे । किसी की पीड़ा में ,संवेदना से उसके कन्धों पर हाथ रखने के स्थान पर ,अपने घरों में मास्क और सैनीटाइजर के पीछे छुप जाते थे । इसको गलत्त भी नहीं कहूँगी क्योंकि अपनी सुरक्षा भी हमारी ही ज़िम्मेदारी है ।
अब इस लहर के तीसरे दौर में ,निश्चय ही एक बार पुनः बेहद संजीदगी से यह सोचने की आवश्यकता है कि हर बार कोविड की विभीषिका बढ़ने पर लॉक डाउन लगाना ही इकलौता समाधान है क्या !
लॉक डाउन लगने पर जीवित रहने के लिए ,रोज कूआँ खोदनेवाला श्रमजीवी वर्ग ,अपने परिजनों की दैनिक आवश्यकताओं के अपूर्ण रह जाने से हताश और विवश हो नकारात्मकता से भर जाता है । उनकी सहायता के लिए विभिन्न संस्थाएं काम करती हैं ,परन्तु सीमित संसाधनों में व्यवहारिक धरातल पर वो भी कितनी सहायक हो सकतीं हैं ,ये हम सब भी जानते हैं ।
इस वर्ग से इतर ,साधन संपन्न अन्य लोग भी मानसिक शून्यता की स्थिति में पहुँच जाते हैं । उनकी स्थिति उस पालतू पक्षी जैसी हो जाती है जिसके साफ़- सुथरे और चमकदार पिंजरे में खाने - पीने का सामान रहता है ,तब भी वह बेचैनी में चीखता रहता है । समझ लीजिये कि हममें से अधिकतर की यही स्थिति हो गयी थी ।
हम को इसका स्थायी समाधान खोजना होगा । मेरे विचारानुसार तो लॉक डाउन से बेहतर होगा कि हम मास्क और सैनिटाइज़ेशन की सावधानी बरतें । सबसे आवश्यक है कि अनावश्यक रूप से बाहर न जाएं कि कभी कभार ,स्थितियाँ सामान्य होने पर बाहर निकल सकें । पारिवारिक कार्यक्रमों को, मात्र परिवार तक ही सीमित कर लें ,तब भी एक - दूसरे से संक्रमित होने का भय और संकट कम हो जायेगा ।
अतः लोगों के अनावश्यक विचरण और एकत्रित होने पर लॉक डाउन लगाना चाहिए ,न कि व्यवसाय इत्यादि दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए घरों से बाहर निकलने पर । #निवी