अश्रु पुकार क्यों खारा करूँ
मैं तो हूँ पलकों की ओस
ऐसे-कैसे अपना परिचय दूँ
यही मनन करूँ बारम्बार
ये लरजते हुए आँसू सिर्फ
स्वाद ही नहीं बेस्वाद करते
अच्छी चमकीली राहों को
धुंधलेपन का अभिशाप
लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
विरासत में दे जाते हैं !
ओस तो सुरभित सुमन में
रिश्तों की नमी को सहेजे
अतिशीतलता से बचा जाती
हर आती-जाती हवा के तेज
ठिठुरते थपेड़ों से सामने
टिके रह जाने की जिजिविषा
सहेज सहलाती बलखाती
वैसे भी कुछ तो बदलाव
हर दिन सौगात में ले आता
बस अश्रुओं को बदल दिया
पलकों की ओस से ........
-निवेदिता