आज निगाहें पीछे मुडना चाहती है
कहीं कुछ छूट गया था ,थोड़ा पहले
वक्त समेट संजोये रखना चाहतीं हूँ
कहीं यादों में ,वादों में जो रह गया
अनसुना बस वही सुनना चाहती हूँ
सदा फूलों की ,ओस की ,रोशनी की
देखती सुनती बोल गुनगुनाती रही ,
आज सिर्फ इस धुंध की ,पतझड की
अंधियारी गहराइयों की नीरव पड़ी
राह की धूल बुहार हटाना चाहती हूँ
जानती हूँ पीछे मुडना ,आगे की राहें
कहीं सपनों सा अटक ठहरा जायेंगी
उसी दायरे में घूमती सी रह जाऊंगी
गति थमने की सजा ,राह भटक चुके
लम्हों की नियति कैसे बनी रहने दूं
पीली पड चुकी पत्तियों को निहार कर
बसंत सा खिलखिलाना चाहती हूँ ........
आज तो बस पीछे मुडना चाहती हूँ !
-निवेदिता
बढते रहना ही जीवन है। पीछे देखना भी पडता है।
जवाब देंहटाएंविगत को याद करते हुए आगे तो बढ़ना ही है ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंयाद रहा कुछ माणिक सा देखा था आते राहों में।
जवाब देंहटाएंaage badhna hi jeewan hai bahut sundar abhiwaykati
जवाब देंहटाएंस्मृति रे कहे मोरे नैन बसी ...
जवाब देंहटाएंस्मृतियों में अटका मन आगे बढ़ने की राह खोज रहा है ...
सुंदर रचना ....
आगे बढना ही जीवन है।
जवाब देंहटाएंder kis baat kee ?...
जवाब देंहटाएंआगे बदना ही जीवन की नियति है...........
जवाब देंहटाएंye ehsaas bhi bahut khoob....
जवाब देंहटाएंआगे बढ़ना ही जीवन है किन्तु कभी-कभी
जवाब देंहटाएंबीते वक्त को देख लेना अच्छा रहता है...
सुन्दर रचना!
अतीत को चुभला कर बार बार वैसा ही स्वाद पाने की अभिलाषा सदैव मन में बनी है काश ! पा सकते...... सुन्दर भावपूर्ण कविता के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग में कुछ problem आ गयी है, खुल ही नहीं पा रहा है, इसलिए लाचार हूँ. खैर !
सुंदर शब्दों के संयोजन से रची रचना अच्छी लगी आभार
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 08 -12 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज... अजब पागल सी लडकी है .
Sundar
जवाब देंहटाएंwww.poeticprakash.com
बहुत सुन्दर प्रविष्टि...बधाई
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी की हलचल में सजी आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी.
आपका आभार.
संगीता जी का आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,निवेदिता जी.
बहुत बढि़या।
जवाब देंहटाएंबसंत सा खिलखिलाना चाहती हूँ ........
जवाब देंहटाएंआज तो बस पीछे मुडना चाहती हूँ !
पिछला याद रखना और आगे की सोचना ,यही तो समझदारी है।
सादर
जीवन चलने का नाम....
जवाब देंहटाएंजीवन मैं संताप घनेरे
जवाब देंहटाएंधूप छाँव सुख दुःख के घेरे
संचित मन मे इस्म्रतियों को
मन से अब बिसराना होगा
आगे बड़ते जाना होगा ...बहुत भावपूर्ण रचना
जीवन का कटु सत्य है.... जिससे आपने अवगत कराया है....
जवाब देंहटाएंlooking back is so endearing at times and it is often rewarding to walk down the memory's lane!
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachana hai
जवाब देंहटाएंनवेदिता जी,...
जवाब देंहटाएंजीवन में आगे बढ़ने के लिए सोचना चाहिए,..
बीती ताहि बिसार दे,आगे की सुधि ले,...सुंदर पोस्ट
मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,...
पीली पड चुकी पत्तियों को निहार कर
जवाब देंहटाएंबसंत सा खिलखिलाना चाहती हूँ ........
आज तो बस पीछे मुड़ना चाहती हूँ !
जिजीविषा को दर्शाती बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ! बसंत सा जीवन हो जाये तो क्या बात है ! बहुत सुंदर रचना ! बहुत बहुत बधाई !
ज्यादा कुछ न मांगती कविता... एक ख़ुशी खुद से लेकर खुद को देने की रखती... वाह !
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