अजीब से हैं
ये बर्फीले एहसास
इस रूह को भी
कंपकंपाते ..
साँसों को थामने
बढ़ते दुआओं के
साए तले जज़्बात !
तुमने तो खुद को
छुपा ही लिया
ज़िन्दगी की
गर्माहट तले ,
फिर मुझे क्यों दी
बर्फीली चट्टान की
ठिठुरती शय्या !
चाय के प्याले से
उठती भाप के
गुनगुनी गुबार तले
औरों को आवाज़ दी
कड़क बर्फ लगाने को !
तुम तो गर्म दुशालों में
सिकुड़ ठंड भगाते रहे
मुझे बर्फ पे सुला
सिकुड़ने को मजबूर किया !
ये कैसे दुनियावी दस्तूर
मेरी निर्जीव शक्ल
औरों को दिखलाने को
मुझको ही विकृत बनाते रहे !
-निवेदिता
मन की संवेदनाओं के कपाट खोलती अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंये कैसे दुनियावी दस्तूर
जवाब देंहटाएंमेरी निर्जीव शक्ल
औरों को दिखलाने को
मुझको ही विकृत बनाते रहे !...bahut badhiya
ये कैसे दुनियावी दस्तूर
जवाब देंहटाएंमेरी निर्जीव शक्ल
औरों को दिखलाने को
मुझको ही विकृत बनाते रहे !...बेहतरीन भाव ...
samvedan shil rachna ...duniyan ke dastur to kuchh nirale hi hain
जवाब देंहटाएंआपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंbahut acchhe sateek shabd vinyas me dhali prabhavi rachna.
जवाब देंहटाएंसटीक भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों की संवेदना ही बर्फ़ीली हो जाती है।
जवाब देंहटाएंतुम तो गर्म दुशालों में
जवाब देंहटाएंसिकुड़ ठंड भगाते रहे
मुझे बर्फ पे सुला
सिकुड़ने को मजबूर किया !
ये कैसे दुनियावी दस्तूर
मेरी निर्जीव शक्ल
औरों को दिखलाने को
मुझको ही विकृत बनाते रहे !waah bahut sahi sundar abhiwaykti ....
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबर्फीले एहसास दुनियावी दस्तूर के तले दफन हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंये कैसे दुनियावी दस्तूर
जवाब देंहटाएंमेरी निर्जीव शक्ल
औरों को दिखलाने को
मुझको ही विकृत बनाते रहे
बहुत गहरी बात लिए पंक्तियाँ ..... सुंदर रचना
तुमने तो खुद को
जवाब देंहटाएंछुपा ही लिया
ज़िन्दगी की
गर्माहट तले ,
फिर मुझे क्यों दी
बर्फीली चट्टान की
ठिठुरती शय्या !
Bahut achchha laga ye hissa.
so intense, deep and yeah cold expressions..
जवाब देंहटाएंgreat metaphors u used :)
जब रात बीतती है जग की,
जवाब देंहटाएंस्नेहिल धूप निकल आती,
यह बर्फ व्यग्र तब पिघलेगी,
भावों की गंगा निकलेगी।
बहुत कम शब्दों में गंभीर बात कहना / साथ ही एक दार्शनिक चिंतन भी कि निर्जीब शक्ल को औरों को दिखाने विकृत बनाते रहे / इसका एक अर्थ उस ओर भी लिया जा सकता है जब म्रत्यु उपरांत शब को कुछ अवधि तक सुरक्षित रखने वर्फ में रख दिया जाता है / दूसरे कोइ बहुत आराम में रहे और दूसरा कष्ट भोगता रहे उस कष्ट भोगने को भी वर्फ पर सुलाना कहा जा सकता है / वर्फीली चट्टान की शैया भी एक कष्ट को कहा जा सकता है / बहुत ही उत्तम रचना है
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे भाव हैं।
जवाब देंहटाएंसादर
निर्जीव शक्ल.. विकृत, बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव............
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna..bahut khub
जवाब देंहटाएंwelcome to my blog :)
bahut khubsurat ahsaas.
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंएक संवेदनशील मन की व्यथा.. सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसादर...
man ki sari samvednayen drvit ho gai
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव गहरे अहसास लिए मनभावन कविता.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.....संवेदनशील रचना..
जवाब देंहटाएंलगता है जैसे व्यथा ने व्यथा के लिये व्यथा से व्यथा की
जवाब देंहटाएंव्यथा लिखी हो। बार-बार पढ़ने को मन चाहता है। वाह
कमाल, शब्द-शब्द में पीड़ा।
bahut sundar chitran ... badhai Nivedita ji.
जवाब देंहटाएंgahare bhav se likhi behtarin prastuti....
जवाब देंहटाएंगहरी भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....
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