लघुकथा : मैं चाहता हूँ !
सुबह से ही घर का माहौल तल्ख़ था । वह उठा और अपनी चाय का कप रसोई में रख आया । बाकी के कप मेज पर ही पड़े थे ,बच्चे ने उन पर निग़ाह पड़ते ही वो सब उठाये और रसोई में रख आया । सब अपने - अपने काम का बहाना करते अपने कमरों में सिमट गए और ए. सी. ऑन कर लिया । ज़ाहिर सी बात है ए. सी. ऑन होने पर कमरों के दरवाज़े भी बन्द होने ही थे ।थोड़ी देर में घण्टी की आवाज़ पर बाहर देखने के साथ ही वो बोल उठा ,"काम करने के लिए बुलाया है, बात कर के रख लो ।"
वह चौंक उठी ,"अचानक क्या जरूरत पड़ गयी जो इस को बुलाना पड़ा ? "
वह पौरुषीय दम्भ में झुंझला पड़ा ,"सब अपने कमरों में काम करेंगे तो नाश्ता - खाना पहुँचाने के लिए इसकी जरूरत पड़ेगी । मैं नहीं चाहता कि अधिक काम से थको और बीमार पड़ो ।"
वह शान्त भाव से पलट कर अंदर जाने लगी ,"उसको रखना है तो खुद बात कर के काम समझा दो । वैसे घर का काम नहीं बढ़ा है ,बस दो काम का रूप बदल जाये तो कोई समस्या ही नहीं ... पहली कि जब कोई चाय का कप हटा रहा हो तो सिर्फ़ अपना कप न हटाये ... और दूसरी यह कि मैं चाहता हूँ को हम चाहते हैं में बदल दिया जाये । " #निवी
आपकी लिखी रचना सोमवार 7 जून 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
लघु कथा पर बड़ी सीख। एक डिसक्लेमर भी लगा देतीं, हमें अमितजी पर दया आ रही है।
जवाब देंहटाएंगहरी लघुकथा...बहुत साफ संदेश देती हुई....।
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समस्या संवादहीनता होती है शायद
जवाब देंहटाएंऔर गुस्से में भी साथी की फ्रिक्र बहुत गहरे रिश्ते को इंगित करता है।
सुंदर संदेशात्मक लघुकथा।
सादर।
आधुनिक युग के नए नए स्यापे!!! कथित WFH ने पगला दिया दुनिया को।
जवाब देंहटाएंअच्छा संदेश देती रचना
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जवाब देंहटाएंसंकट मोचन हनुमान अष्टक लिरिक्स | Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics