लेखनी ने कहा
आज तुम लिखो
एक कविता
कुछ यादों भरी
कुछ भावों भरी!
पन्ने सारे कोरे रह गए
कहीं सूख चली थी
लेखनी की स्याही
तरलता की चाहत में!
भटकती गयी कल्पना
कुछ नमी सी बह चली है
पलकों की कोरों से
कपोलों तक की यात्रा में!
अब लेखनी से पूछ रही हूँ
कहीं वही तो नहीं
मेरी अनलिखी सी कविता
जिसने संजो रखे हैं
बिम्ब मेरे हृदय के!
निवेदिता श्रीवास्तव #निवी
#लखनऊ
ऐसी न जाने कितनी कवितायेँ अनलिखी ही रह जाती हैं ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ...