मन कहता है तू मुझको लिख
सब खुद ही बन जायेगा !
बिखर गया घर था वो प्यारा
पवन उड़ाती सब आये !
चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यूँ आकार प्रिये !
मन का आवाँ तपता जाये
हर अक्षर गहन गायेगा !
मन कहता है तू मुझको लिख
सब खुद ही बन जायेगा !
बिछड़ गए थे जो शब्द कहीं
रच रहे नवल गान प्रिये !
उर की बाती अभी जलेगी
जीवन का आधार लिये !
उमड़ - घुमड़ कर जब घन बरसा
नदिया छलका आयेगा !
मन कहता है तू मुझको लिख
सब खुद ही बन जायेगा !
भोर भयी जब ऊषा जागी
किरणों की मनुहार लिये !
साँझ ढ़ले सब छुप जायेगा
चाँद हुआ साकार प्रिये !
कुछ मुझ में तू भी रह जाये
कुछ तुझ सा बन गायेगा !
मन कहता है तू मुझको लिख
सब खुद ही बन जायेगा !
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
बहुत सुन्दर और भावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25 मई 2020) को 'पेड़ों पर पकती हैं बेल' (चर्चा अंक 3712) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंवाह! प्रेम की अनुभूति में पगा शानदार सृजन आदरणीया दीदी.
जवाब देंहटाएंसादर