रविवार, 24 मई 2020

मन कहता है ...



मन कहता है तू मुझको लिख 
सब खुद ही बन जायेगा !   

बिखर गया घर था वो प्यारा
पवन उड़ाती सब आये !
चाक चले जब गीली मिट्टी 
लेती ज्यूँ आकार प्रिये !     
मन का आवाँ तपता जाये 
हर अक्षर गहन गायेगा !       
मन कहता है तू मुझको लिख 
सब खुद ही बन जायेगा !   

बिछड़ गए थे जो शब्द कहीं
रच रहे नवल गान प्रिये !     
उर की बाती अभी जलेगी   
जीवन का आधार लिये !       
उमड़ - घुमड़ कर जब घन बरसा   
नदिया छलका आयेगा ! 
मन कहता है तू मुझको लिख 
सब खुद ही बन जायेगा !

भोर भयी जब ऊषा जागी   
किरणों  की मनुहार लिये !   
साँझ ढ़ले सब छुप जायेगा   
चाँद हुआ साकार प्रिये !     
कुछ मुझ में तू भी रह जाये   
कुछ तुझ सा बन गायेगा ! 
मन कहता है तू मुझको लिख 
सब खुद ही बन जायेगा !   

    .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25 मई 2020) को 'पेड़ों पर पकती हैं बेल' (चर्चा अंक 3712) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  2. वाह! प्रेम की अनुभूति में पगा शानदार सृजन आदरणीया दीदी.
    सादर

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