झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

नमक जिंदगी का

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 कभी कभी  ये हँसी  उमगती है  किलकती है  बस एक  झीनी सी  ओट दे जाने को  और आँसुओं को  ख़ुशी के जतलाने को  और हाँ  ये आँसू भी तो  बेसबब नही  इन...
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बुधवार, 9 अप्रैल 2025

अन्तिम प्रणाम 🙏

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आ गयी जीवन की शाम करती हूँ अन्तिम प्रणाम! रवि शशि की बरसातें हैं अनसुनी बची कई बातें हैं। प्रसून प्रमुदित हो हँसता भृमर गुंजन कर कहता। ...
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रविवार, 6 अप्रैल 2025

जय सियाराम

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नगरी प्यारी राम की, बहती सरयू धार। नगर अयोध्या आ गए , करने को उपकार।। * राम-राम के बोल में, रमता है संसार। माया से तू दूर हो, मानव से कर प्य...
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गुरुवार, 27 मार्च 2025

रामचरित मानस में आग के विविध रुप

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  आग ... सच कितना डराती है यह आग। अपनी विकट भूखी ज्वाला में सब कुछ हजम कर जाती है और अवशेष के रुप में बच जाते हैं बस कुछ सूखे कण, जिसको राख ...
बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

शिवोहम ...

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 लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन  कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!   सुमिरूँ तुझको ओ अविनासी दरस को तेरे अँखियाँ पियासी। पिनाकपाणी जपूँ मैं स्त्रोतम आओ...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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