ये शून्य .............
जब भी दिख जाता है
प्रश्नों के घेरे में बाँध
सूना कर जाता है
सोचती रह जाती
ये शंकराचार्य का है
किसी का रिपोर्ट कार्ड !
मन होता शांत-स्वस्थ
कितने सारे अंक है दिखते
शून्य न जाने किन गलियों
अंधियारों की भूलभुलैय्या में
गुम अदृश्य हो जाता .....
ढूढें से भी ना मिलता
पर मची हो उथल-पुथल
ये इकलौता शून्य इतना बड़ा हो
सबको निगल जाता ......
कहीं कुछ भी नहीं दिखाई देता
खुद में ,दूसरों में कमियाँ ही दिखती
ये इकलौता शून्य ..................
खुद में कुछ भी नहीं ,
पर साथ जिसके लग जाता
कीमत उसकी घटा या बढ़ा जाता
ये शून्य .....इकलौता शून्य ...........
-निवेदिता
.
ये इकलौता शून्य इतना बड़ा हो
जवाब देंहटाएंसबको निगल जाता ......
सारगर्भित रचना , आभार
ये इकलौता शून्य ..................
जवाब देंहटाएंखुद में कुछ भी नहीं ,
पर साथ जिसके लग जाता
कीमत उसकी घटा या बढ़ा जाता
ये शून्य .....इकलौता शून्य ...........
gr8
सटीक और सार्थक बात ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशून्य को समझना बहुत ही कठिन है.....
जवाब देंहटाएंमन का शून्य या तो सृजन लाता है या विद्रोह।
जवाब देंहटाएंशून्य आदि और अंत दोनों है .जहाँ से शुरुआत होती है हम घूम फिरकर एक लम्बा सफर तय करके फिर वहीँ आ पहुँचते हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी कविता.
सादर
शून्य एक गूढ़ विषय है,समझने की कोशिश कर रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंswagat hai...!!
जवाब देंहटाएंJai Ho Mangalmay Ho
गहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिये आप सब का आभार ......
जवाब देंहटाएंaapki sabhi rachnayein bahut hi acchi lagi
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