गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

ये इकलौता शून्य .........


 ये शून्य .............
जब भी दिख जाता है 
प्रश्नों के घेरे में बाँध 
दिल-दिमाग रीता 
सूना कर जाता है 
सोचती रह जाती 
ये शंकराचार्य  का है 
या फिर यूँ ही है .....
किसी का रिपोर्ट कार्ड !
मन होता शांत-स्वस्थ 
कितने सारे अंक है दिखते
शून्य न जाने किन गलियों 
अंधियारों की भूलभुलैय्या में 
गुम अदृश्य हो जाता .....
ढूढें से भी ना मिलता 
पर मची हो उथल-पुथल 
ये इकलौता शून्य इतना बड़ा हो 
सबको निगल जाता ......
कहीं कुछ भी नहीं दिखाई देता 
खुद में ,दूसरों में कमियाँ ही दिखती 
ये इकलौता शून्य ..................
खुद में कुछ भी नहीं ,
पर साथ जिसके लग जाता 
कीमत उसकी घटा या बढ़ा जाता 
ये शून्य .....इकलौता शून्य ...........

                  -निवेदिता 
.


11 टिप्‍पणियां:

  1. ये इकलौता शून्य इतना बड़ा हो
    सबको निगल जाता ......
    सारगर्भित रचना , आभार

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  2. ये इकलौता शून्य ..................
    खुद में कुछ भी नहीं ,
    पर साथ जिसके लग जाता
    कीमत उसकी घटा या बढ़ा जाता
    ये शून्य .....इकलौता शून्य ...........
    gr8

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  3. सटीक और सार्थक बात ..अच्छी प्रस्तुति

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  4. शून्य को समझना बहुत ही कठिन है.....

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  5. मन का शून्य या तो सृजन लाता है या विद्रोह।

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  6. शून्य आदि और अंत दोनों है .जहाँ से शुरुआत होती है हम घूम फिरकर एक लम्बा सफर तय करके फिर वहीँ आ पहुँचते हैं.

    बहुत अच्छी लगी कविता.

    सादर

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  7. शून्य एक गूढ़ विषय है,समझने की कोशिश कर रहा हूँ.

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  8. गहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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