जाँच आँखों की जारी थी
टेस्ट दर टेस्ट न जानेकितनी मशीनों की आनी बारी थी
एक आँख बन्द कर देखिये
क्या दिखता है
छटपटाहट में मन घबराया
और झट दूसरी आँख ने
अपनी रौशनी देनी चाही
तभी आवाज़ आई
नहीं ... बिल्कुल नहीं
हर समय का सहारा नहीं अच्छा
उसको भी खुद को आजमाने दो
ज़िन्दगी की आजमाइश में
आँखों पर छा गया पर्दा
एक अजनबी से अंधेरे का
आशंकाओं का हथौड़ा पड़ने लगा
क्या जीवन बीतेगा
इन अंधेरी धुंधली राहों में
उफ़्फ़ ...
दर्द सर से बदन के हर पोर में जा बसा है
अजनबी सा दलदली अंधेरा
जकड़न में कसता जा रहा
जीवन के हर एहसास को
पर सच बताना
जीवन क्या अब भी जिन्दा है ? #निवी
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 30.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
जवाब देंहटाएंआप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह,बहुत खूब, लाजवाब,
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