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बावरा मन पूछे कान्हा से
किस रूप रहूँ तेरे साथ !
मोर पंख बना ले कृष्णा
मुकुट संग सजूँ तेरे माथ ,
वैजयंती में सुगन्धि बन बसूँ
हॄद तेरे रच जाऊँ मेरे नाथ !
आलता बन पड़ जाऊँ पाँव
कंटक सारे चुन लूँ दीनानाथ ,
पीताम्बर बन अंग सज जाऊँ
रखना संग मुझे मेरे जगन्नाथ !
चल मुरली बना ले मनमोहना
सज्ज रहूँ तेरी कटि में या हाथ ,
बोली तीखी बोले न कभी मुझे
अधरों पर अपने सजा श्रीनाथ !
सुदर्शन चक्र बन कभी न पाऊँ
कैसे करूँगी किसी को अनाथ ,
बता न छलिया क्या बनाएगा
अन्तस ने कर लिया प्रमाथ !
बावरा मन बोले कान्हा से
रहना मुझको तेरे ही साथ ,
जिस विध चाहे रख मुझको
सदा रखना तू 'निवी' को साथ !
.... निवेदिता श्रीवास्तव '#निवी'
प्रमाथ : मन्थन
बहुत सुन्दर और मनभावन गीत।
जवाब देंहटाएंSpice Money Login Thanks You.
जवाब देंहटाएंMunger News