सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

नाजुक सा वो ख़्वाब ....

 ढ़लते चाँद के संग 

पुरसोज़ नज़्म की मानिंद

एक ख़्वाब ने दी है

बड़ी ही नामालूम सी दस्तक

और बस इतना ही पूछा

भर लो मुझको आँखों में

सजा दूँ तेरी यादों का दामन 

या तलाशूं कोई दूजा माहताब

आँखों की चिलमन बरबस

यूँ ही सी बेपरवाह छलक उठी

और नाजुक सा वो ख़्वाब 

पैबस्त हो गया दिल की नमी में !

      ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'


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