विधना बैठी राम झरोखे
हँसती यूँ ही हलके- हलके
नव पल्लव खिलता देख - देख
थिरक उठी अल्हण अमराई
रौद्र रूप ले कर रवि बैठा
रो पड़ी मेरी अंगनाई
रोता अम्बर अँखियाँ मूंदे
अश्रु बहा रही चुपके - चुपके !
महावर अरु हिना थी संगी
थिरक - थिरक पायल खनकाई
चूनर ओढ़े थी सतरंगी
कालिमा अभी कैसी छाई
काल रंग बदल छल रहा है
ले गया खुशियाँ वो छल के !
बिलख रही साँसें अब मेरी
रो रहा मन हो कर अब विह्वल
उतर गया सिंगार जिसका
ये बुलबुल है मेरी घायल
अंतस में भर लूंगी उसको
भोले आओ तुम तो चल के !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियाँ।
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