मंगलवार, 27 मई 2014

पुण्य सलिला की तलाश में ......


गंगा जल 
सदैव गंगा की 
लहरों में ही नहीं मिलता 
पर हाँ !
कभी कभी जल पात्र 
या कह लो 
गंगाजली में भी रहता है 
पर .....
जब असली एकदम खरा 
शुद्ध ,पावन गंगा जल खोजा 
न गंगोत्री में मिला 
और ना गोमुख में ही !
बस इक मासूम सी 
झलक दिख ही गयी 
मनभाती न कर पाने 
और न मिल पाने पर 
छलक पड़ी 
नन्ही - नन्ही अँखड़ी में !
और मैने भी अपने 
दिल के सागर में 
सॅंजो लिया 
इस पुण्य सलिला को 
और हाँ !
अकसर खिलखिला कर 
मनचाही कर लेने पर 
इन्द्रधनुषी मोती 
छलक जाने 
पर भी 
पुण्य सलिला की 
तलाश पूरी हो जाती है ! ....... निवेदिता 


14 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! कितनी प्यारी सी बात
    इन्द्रधनुषी मोती
    छलक जाने
    पर भी
    पुण्य सलिला की
    तलाश पूरी हो जाती है !

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  2. सचमुच बडे प्यारे हैं ये इंद्र-धनुषी मोती। गंगा जल के छिडकाव की तरह।

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  3. नन्ही आँखों में ही बची विशुद्ध पुण्यसलिला !

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  4. वाह बहुत सुन्दर......
    पुण्य सलिला की तलाश पूरी तो हुई.....

    सस्नेह
    अनु

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  5. बहुत सुन्दर ....सुन्दर भाव ..बधाई

    भ्रमर५

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  6. गालिब ने फरमाया है कि
    रग़ों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
    जो आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है!!
    वसे ही गंगोत्री से जो निकले वही गंगा हो इसके लिये आवश्यक है कि किसी के आँखों से निकली गंगा की पवित्रता को अपने ह्रिदय में उतारे!
    पुण्य सलिला...!! बहुत सुन्दर!!

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  7. कितनी खूबसूरत कविता !!

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  8. सच्ची ...फिर भी तो लोगों की तलाश पूरी नहीं होती। बहुत ही सुंदर भाव लिए बेहद खूबसूरत रचना।

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