सदैव गंगा की
लहरों में ही नहीं मिलता
पर हाँ !
कभी कभी जल पात्र
या कह लो
गंगाजली में भी रहता है
पर .....
जब असली एकदम खरा
शुद्ध ,पावन गंगा जल खोजा
न गंगोत्री में मिला
और ना गोमुख में ही !
बस इक मासूम सी
झलक दिख ही गयी
मनभाती न कर पाने
और न मिल पाने पर
छलक पड़ी
नन्ही - नन्ही अँखड़ी में !
और मैने भी अपने
दिल के सागर में
सॅंजो लिया
इस पुण्य सलिला को
और हाँ !
मनचाही कर लेने पर
अकसर खिलखिला कर
इन्द्रधनुषी मोती
छलक जाने
पर भी
पुण्य सलिला की
तलाश पूरी हो जाती है ! ....... निवेदिता
वाह ! कितनी प्यारी सी बात
जवाब देंहटाएंइन्द्रधनुषी मोती
छलक जाने
पर भी
पुण्य सलिला की
तलाश पूरी हो जाती है !
बहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
सचमुच बडे प्यारे हैं ये इंद्र-धनुषी मोती। गंगा जल के छिडकाव की तरह।
जवाब देंहटाएंआभार आपका :)
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंनन्ही आँखों में ही बची विशुद्ध पुण्यसलिला !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर......
जवाब देंहटाएंपुण्य सलिला की तलाश पूरी तो हुई.....
सस्नेह
अनु
अप्रतिम रचना। !!
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....सुन्दर भाव ..बधाई
जवाब देंहटाएंभ्रमर५
गालिब ने फरमाया है कि
जवाब देंहटाएंरग़ों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जो आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है!!
वसे ही गंगोत्री से जो निकले वही गंगा हो इसके लिये आवश्यक है कि किसी के आँखों से निकली गंगा की पवित्रता को अपने ह्रिदय में उतारे!
पुण्य सलिला...!! बहुत सुन्दर!!
बहुत भावभीनी रचना।
जवाब देंहटाएंकितनी खूबसूरत कविता !!
जवाब देंहटाएंसच्ची ...फिर भी तो लोगों की तलाश पूरी नहीं होती। बहुत ही सुंदर भाव लिए बेहद खूबसूरत रचना।
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