शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

क्या कहूँ ......



स्नेह प्यार या कहूँ
छलकता बरसता दुलार
नदिया की लहरों सी 
मन बहकाती उमंगें हैं 

लाल हो या गुलाबी 
बड़ी हो या फिर छोटी 
ये बिंदिया तो बस 
तुम्हारी साँसों को ही 
निरख-निरख कर 
बस यूँ ही निखरती हैं
सम्मोहक बिंदु बन
तुमको आभासित करती
मन प्रभासित कर जाती है

ये अनबोलती
खामोश निगहबान सी
मन की गिरह खोलती
आँखें निगाह बचा
लचक सी जाती हैं 
अनदेखा सा ही कर
निगाहों का बाँध बनती है
काजल की कजरारी धार ......
                        -निवेदिता


18 टिप्‍पणियां:

  1. अनदेखा सा ही कर
    निगाहों का बाँध बनती है
    काजल की कजरारी धार ......
    -निवेदिता
    sach mein ?
    badhaayee

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  2. अनदेखा सा ही कर
    निगाहों का बाँध बनती है
    काजल की कजरारी धार ......

    ...bahut khoob! bahut komal ahasas...

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  3. अनुपम भाव संयोजन लिए ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  4. सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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  5. bahut manoran bhaavon ko ek sootra me piroya hai aapne.bahut bhaai aapki rachna.

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  6. your "Kya Kahu..." creation touched my heart core. it made a place deep in my heart. .....

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  7. सुंदर एवं कोमल भावों से सजी खूबसूरत अभिव्यक्ति....

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  8. सुन्दर वर्णन...
    बहुत प्यारी अभिव्यक्ति.....

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