रविवार, 6 अप्रैल 2025

जय सियाराम


नगरी प्यारी राम की, बहती सरयू धार।

नगर अयोध्या आ गए , करने को उपकार।।

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राम-राम के बोल में, रमता है संसार।

माया से तू दूर हो, मानव से कर प्यार।।

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मनका-मनका खोल कर, खोज रहे भगवान।

रघुनंदन को देख कर , झूम उठे हनुमान।।

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सदा यही मन चाहता, सजा रहे दरबार।

प्रभु के दर्शन से बड़ा, चाहूँ क्या उपहार।।

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राज तिलक प्रभु का हुआ, गायें मंगलचार।

सुमन वृष्टि अनुपम हुई, करते सब जयकार।।

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भूलो विषय विकार को, छोड़ो सब संताप।

छेड़ रागिनी प्रेम की, आन बसो प्रभु आप।।

निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'


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