नगरी प्यारी राम की, बहती सरयू धार।
नगर अयोध्या आ गए , करने को उपकार।।
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राम-राम के बोल में, रमता है संसार।
माया से तू दूर हो, मानव से कर प्यार।।
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मनका-मनका खोल कर, खोज रहे भगवान।
रघुनंदन को देख कर , झूम उठे हनुमान।।
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सदा यही मन चाहता, सजा रहे दरबार।
प्रभु के दर्शन से बड़ा, चाहूँ क्या उपहार।।
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राज तिलक प्रभु का हुआ, गायें मंगलचार।
सुमन वृष्टि अनुपम हुई, करते सब जयकार।।
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भूलो विषय विकार को, छोड़ो सब संताप।
छेड़ रागिनी प्रेम की, आन बसो प्रभु आप।।
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
सुन्दर..! जय श्री राम 🌷💐
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