बुधवार, 13 नवंबर 2019

बचपन

बचपन

मासूम बचपन तलाश में चल पड़ा
सूर्य किरणों के जगने से भी पहले

भूख को दबा मन को किया कड़ा
सुन नहीं मिलेगा दान बिक्री के पहले

खुरचती आँते कहती नहीं ये कूड़ा
कूड़े की गन्दगी कहती भूख सह ले

रोटी की तलाश में वो फिर चल पड़ा
लिए बोरी कांधे पर दिखे और भर ले

ढेर में दिखती जूठन मन ठिठका अटका
समेट ले  कूड़ा समझ कर या पेट भर ले

विवश बचपन हाथ फैलाये मजबूर खड़ा
उपदेश से ही शायद पेट खुद को भर ले

   ... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

2 टिप्‍पणियां:

  1. बचपन में लौटना तो मुमकिन है ही नहीं, बदनसीबी ये कि अपना बचपन याद भी नहीं रह पाता... काश लौट के बस देख ही पाते...

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  2. हम फिर भी भाग्यशाली हैं कि अच्छा बचपन ही जीया होगा, ये बच्चे तो वो जी भी नहीं पाए... 😢

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