पता .....
ये भी
एक अजीब ही
शै बनी रही
नाउम्मीदी में भी
फ़क्त इसको
तलाशते ही रहे
उम्र भर
पर ....
आख़री सांस
के आने पर भी
पता का भी
पता न मिला
कभी ......
अपने होने का
छलावा बन
एक नाम
तो कभी
एक नंबर के
होने का एहसास
जगा जाते हैं
पर .....
अगला ही लम्हा
जैसे खिड़की के
खुले काँच पर
चंद खरोंचें दे
बाहर की कंटीली
शाखों के होने का
सोया सा एहसास
खुली पलकों में
वीरानी की चमक
सा बरस जाता ......
-निवेदिता
बस पता ही नही मिलता …………सबकी यही है शाश्वत खोज
जवाब देंहटाएंएक खोज जो जीवन पर्यंत चलती रहती है ......
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति .....
आख़री सांस
जवाब देंहटाएंके आने पर भी
पता का भी
पता न मिला
कभी ......
अपने होने का
छलावा बन
एक नाम
तो कभी
एक नंबर के
होने का एहसास
जगा जाते हैं ... सशक्त भाव
बहुत अच्छी पोस्ट !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंEk darshanik rachana!
जवाब देंहटाएंभावो का सुन्दर समायोजन......
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhiwykti
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