शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

आँखें



ये ऐसी विशिष्ट आँखें हैं जिनको एक व्यक्तित्व नहीं सिर्फ उसका स्त्री शरीर ही दिखाई देता है ....


आँखें 
कितनी बड़ी दुआ हैं !
किसी अंधेरी राह के 
राही ने हसरत छलकाई 
सच ऐसा है क्या ...
सोते - जागते हर पल 
स्वप्नदर्शी बना 
कितनी चुभन दे 
दिखा कर राह  
रौशन अँधेरे की  
गहराइयाँ 
या 
श्वांस - प्रश्वांस की 
राह छलती 
दम तोड़ते बोलों से 
अबोला करती 
देखे - अनदेखे सपनों पर 
अश्रुधार बरसा 
विप्लव का तांडव बन 
कसक बन जाती ....
कैसी है ये दुआ 
सिर्फ निगाहें डाल 
कर जाती अवांछनीय 
और हाँ !
घट भी जाता है अघटनीय 
                            -निवेदिता 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहन भाव.....

    बहुत ही अच्छी रचना.
    सस्नेह
    अनु

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  2. आँखें नियामत हैं....पर कभी कभी इन्हीं से दरिंदगी भी छलकती है ... गहन अभिव्यक्ति

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  3. सभी को अपना योगदान इस समस्या के उन्मूलन के लिये करना चाहिये. सामयिक प्रस्तुति.

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